गीतांजलि गुप्ता का कविता
कोइ भि कविता पर क्लिक् करते हि वह आपके सामने आ जायगा।
1।  गुरु वंदना                         
2।  
वहि क्यों दुर होते हैं         
          

*
गुरु वंदना

जिस गुरु का आशिर्वाद मैनें पाया,
जिसने मुझे उंगली पकड़ कर चलना सिखाया,
जिसके आगे मैं श्रद्धा से नतमस्तक हो जाती हुँ,
वहि तो है श्रीमती कृष्णा चक्रवर्ती ।

जिसने मुझे माँ की ममता दी,
जिसने मुझे दोस्त का प्यार दिया,
जिसने मुझे रिश्तों की नयी परिभाषा दी,
वहि तो है श्रीमती कृष्णा चक्रवर्ती ।

जिसने मुझे जीवन का अर्थ समझाया,
जिसके सान्निध्य मे मैनें अपने आपको जाना,
जिसको मैनें हमेशा एक नये रूपमें देखा,
जिसकी आँखों में मैने हर बार नवीनता का आभास पाया,
वहि तो है श्रीमती कृष्णा चक्रवर्ती ।

मैं कितनी भाग्यशाली हूँ कि मुझे उनका साथ मिला,
एक सहज ढंग से जीने का विश्वास मिला,
दुनिया को देखने का नया अंदाज मिला,
जिसके सामने मेरा सारा आदर और सम्मान बी कम है,
वहि तो है श्रीमती कृष्णा चक्रवर्ती ।

**************
*
वही क्यों दुर होते हैं

वही क्यों दुर होते हैं, जिन्हे दिल याद करता है ।
जिनके बिछड़ जाने के बाद, फिर मिलने की फरियाद करता है ।

आपके जाने के बाद हम बिलकुल अकेले हो जायेंगे ।
आपके संग गुजरे पल, हर पल हमें याद आऐंगे ।
इन वादों के सहारे ही तो इन्सान जिया करता है ।
वही क्यों दुर होते हैं, जिन्हे दिल याद करता है ।

आपने हम सबको कितना प्यार किया ।
जब भी आपको पुकारा हमने, आपका दीदार किया ।
इस दीदार से हम सब का सुख चैन जुड़ा करता है ।
चंद घड़ियों के साथ में ही आप ने हमको जीत लिया ।
हमको खुशियाँ दे कर हमारा दर्द लिया
इस साथ की तमन्ना दिल बार बार करता है ।

वही क्यों दुर होते हैं, जिन्हे दिल याद करता है ।
जिनके बिछड़ जाने के बाद, फिर मिलने की फरियाद करता है ।

            ********