फ़िराक़ गोरखपुरी का असली नाम रघुपति सहाय था । उनका जन्म उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जीला में हुआ था । वे उर्दू के बहुत ही जाने माने कवि थे । इसी समय उर्दू के काव्यगगन में साहीर, ईकबाल, फ़ैज़, कैफ़ि के जैसे और भी सितारे चमक रहे थे । सिभिल सर्भिस के लिये चुनें जाने पर भी उंहोंनें उसको ठुकराकर, स्वतंत्रता के लड़ाइ में भाग लेकर डेढ़ साल जेल में रहे । वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के अध्यापक रहे । यहीं पर इन्होंने "ग़ुल-ए-नग़मा" लिखी जिसके लिए उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला । इसके अलावा रूह-ओ-क़यानत, नग़मा-नुमा उनके मशहूर कविता है । वे धर्म-निरपेक्षता के लिये लगातार आवाज उठाते रहे । उन्होंनें "भारत सरकार की उर्दू केवल मुसलमानों का भाषा" इस नीति को रोकने मे कामयाब रहे । पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उनको संसद में राज्य सभा का सदस्य मनोनित किया था ।
हमारा कौशिश यह है कि उनके कविताओं मे से कुछ, देवनागरी मे यहाँ उपस्थित कर सकें । (अगर ग़लती हो तो हम क्षमा चाहते हैं और इस पर आप का टिप्पणी, जो हमारे लिये बहुत ही मूल्यवान होगा, इस पते पर भेजिये - srimilansengupta@yahoo.co.in ) ।