मीना कुमारीका पैदाइशी नाम महज़बीन बानो । जन्म बम्बई, या आज का मुम्बई शहर में हुआ था । पिता अली बक्श रंग मंच और सिनेमा के कलाकार तथा संगीतकार थे । माता प्रभावती देवी (ईकबाल बेगम) भी रंग मंच के अभिनेत्री थी जिसका बंगाल के जाने माने ठाकुर परिवार से संबन्ध था । मीना कुमारी का नानी का नाम हेम सुंदरी ठाकुर, जो ठाकुर परिवार के बहु थी । मीना कुमारी के जन्म के समय पिता आर्थिक संकट में थे, इसिलिये वे सिर्फ छः साल के उमर से ही बहुत से पिल्मों में काम करना शुरू किया, अपने मर्ज़ि के ख़िलाफ़। पहला फिल्म, बेबि मीना के नाम से, प्रकाश स्टुडिओ से विजय भट्ट का "फ़र्जन्द-ए-वतन" (1939) । 1952 में विजय भट्ट का "बैजू बावरा" मे उनका अदाकारी से उन्होंने, गिने चुने फिल्मी सितारों के सभा में अपना आसन कायम कर चुकी थी । इसके बाद परिनीता (1953), दायरा (1953), एक ही रास्ता (1956), शारदा (1957), दिल अपना और प्रीत परायी (1960) उन्हे ट्राजिडी क्वीन के नाम से मशहूर कर दिया । उन्हें फिल्मफेयर पुरस्कार मिला बैजू बावरा (1953), परिनीता (1954), आरती (1962), काजल (1965) आदि फिल्मों के लिये । गुरु दत्त के साहब बिबि और ग़ुलाम, धर्मेन्द्र के साथ फूल और पत्थर (1966) इत्यादि और कमाल अमरोही का "पाकीज़ा" जो उनके और कमाल अमरोही के निजी जिंदगी पर आधारित है और 1952 से बनना शुरू होकर 1972 में जाके समाप्त हुआ, उनका सबसे प्रसिद्ध फिल्म है । प्रख्यात फिल्म निर्माता कामाल अमरोही से उनका शादी 1952 में हुआ, और व्याक्तित्व के संघात के वजह से 1964 में तलाक़ हो गया । दुःख व सूनापन उनके जिंदगी का हिस्सा बन गया था जो उनके कविताओं मे भरा हुआ है । जिंदगी में दुःख और सूनापन हि शायद उन्हे शराब के नशे में डुबो दिया था । शायद उन्हे अपना अंत नज़र आने लगा था । शायद इसिलिये 1972 में "मेरे अपने" फिल्म रिलीज होनें के बाद ही कमाल साहब के साथ "पाकीज़ा" का शूटिंग समाप्त किया, जो उनके मृत्यु के बाद ही दर्शक तक पहुँच पाया था । मीना कुमारी के उर्दू कवितायें, उनके गुज़र जाने के बाद, गुलज़ार के संपादना में नाज़ उपनाम से प्रकाशित किया गया । हमारा कोशिश यह है कि उनके उर्दू कविताओं से कुछ, देवनागरी मे यहाँ उपस्थित कर सकें । अगर ग़लती हो तो हम क्षमा चाहते हैं और इस विषय पर आप का टिप्पणी, जो हमारे लिये बहुत ही मूल्यवान होगा, इस पते पर भेजिये - srimilansengupta@yahoo.co.inसूत्रः-विकिपिडिया