सुबह से शाम तलक दुसरों के लिए कुछ करना है जिसमें ख़ुद अपना कुछ नक़्श नहीं रंग उस पैकरे-तस्वीर ही में भरना है जिन्दगी क्या है, कभी सोचने लगता है यह ज़हन और फिर रूह पे छा जाते हैं दर्द के साये, उदासी सा धुंआ, दुख की घटा दिल में रह रहके ख्याल आता है जिन्दगी यह है तो फिर मौत किसे कहते हैं ? प्यार इक ख्वाब था, इस ख़्वाब की ता'बीर न पूछ क्या मिली जुर्म-ए-वफ़ा की ता'बीर न पूछ
मेरे महबूब जब दोपहर को समुन्दर की लहरें मेरे दिल की धड़कनों से हमआहंग होकर उठती हैं तो आफ़ताब की हयात आफ़री शुआओं से मुझे तेरी जुदाई को बर्दाश्त करनें की क़ुव्वत मिलती है
मेरा माज़ी मेरी तन्हाई का यह अन्धा शिग़ाफ़ मेरी सांसों की तरह साथ मेरे चलता रहा और मेरी नब्ज़ की मानिन्द मेरे साथ जिया जिसको आते हुए जाते हुए अक्सर लम्हे अपने एहसास को शिद्दत से तपीश देते रहें ज़ख़्म की आँख से टपका हुआ यह गर्म लहू दूसरे लोगों की तस्कीन का सामान हुआ कोइ ऐसा भी न था जिसने इसे परखा हो या अचानक ही पलट आया हो, पहचाना हो मेरे माज़ी ! मेरे हमराज़ ! मेरी जलती उदासी के शरीक तेरी आहें, तेरे नासूर, तेरे दर्द तमाम उनसे रिश्ता है मेरा, आज ये सब मेरे हैं
मुहब्बत बहार की फूलों की तरह मुझे अपने जिसम के रोएं रोएं से फूटती मालूम हो रही है मुझे अपने आप पर एक ऐसे बजरे का गुमान हो रहा है जिसके रेशमी बादबान तने हुए हों और जिसे पुरअसरार हवाओं के झोंके आहिस्ता आहिस्ता दूर दूर पुर सुकून झीलों रौशन पहाड़ों और फूलों से ढके हुए गुमनाम जज़ीरों की तरफ लिये जा रहे हों वह और मैं जब ख़ामोश हो जाते हैं तो हमें अपने अनकहे, अनसुने अलफ़ाज़ में जुगनुओं की मानिंद रह रहकर चमकते दिखाई देते हैं हमारी गुफ़्तगू की ज़बान वही है जो दरख़्तों, फूलों, सितारों और आबशारों की है यह घने जंगल और तारीक रात की गुफ़्तगू है जो दिन निकलने पर अपने पीछे रौशनी और शबनम के आँसु छोड़ जाती है, महबुब आह मुहब्बत !
सियाह नक़ाब में उसका संदली चेहरा जैसे रात की तारिकी में किसी ख़ानक़ाह का खुला और रौशन ताक़ जहां मोमबत्तियाँ जल रही हो ख़ामोश बेज़बान मोमबत्तियाँ या वह सुनहरी जिल्दवाली किताब जो ग़मगीन मुहब्बत के मुक़द्दस अशआर से मुंतख़ीब हो
एक पाकीज़ा मंजर सियाह नक़ाब में उसका संदली चेहरा ******** . उपर
टुकड़े टुकड़े दिन बीता, धज्जी धज्जी रात मिली
टुकड़े टुकड़े दिन बीता, धज्जी धज्जी रात मिली जितना जितना आँचल था, उतनी ही सौग़ात मिली
रिमझिम रिमझिम बूंदों में, ज़हर भी है और अमृत भी आँखे हंस दी दिल रोया, यह अच्छी बरसात मिली
जब चाहा दिल को समझें, हंसनें की आवाज़ सुनी जैसे कोई कहता हो, ले फिर तुझको मात मिली
मातें कैसी घातें क्या, चलते रहना आठ पहर दिल सा साथी जब पाया, बेचैनी भी साथ मिली
होंठों तक आते आते, जाने कितने रूप भरे जलती बुझती आंखों मे, सादा सी जो बात मिली
रात सुनसान है तारीक है दिल का आंगन आसमां पर कोइ तारा न जमीं पर जुगनू टिमटिमाते हैं मेरी तरसी हुइ आँखों में कुछ दिये तुम जिन्हे देखोगे तो कहोगे : आंसू
दफ़अतन जाग उठी दिल में वही प्यास, जिसे प्यार की प्यास कहूं मैं तो जल उठती है ज़बां सर्द एहसास की भट्टी में सुलगता है बदन प्यास - यह प्यास इसी तरह मिटेगी शायद आए ऐसे में कोई ज़हर ही दे दे मुझको
हर मसर्रत एक बरबादशुदा ग़म है हर ग़म एक बरबादशुदा मसर्रत और हर तारिकी एक तबाहशूदा रौशनी है और हर रौशनी एक तबाहशूदा तारिकी इसि तरह हर हाल एर फ़नाशूदा माज़ी और हर माज़ी एक फ़नाशूदा हाल