यह न सोचो कल क्या हो

यह न सोचो कल क्या हो
कौन कहे इस पल क्या हो

रोओ मत, न रोनें दो
ऐसि भी जल थल क्या हो

बहती नदी की बांधे बांध
चुल्लू में हलचल क्या हो

हर छन हो जब आस बना
हर छल फिर निर्बल क्या हो

रात ही गर चुपचाप मिले
सुबह फिर चंचल क्या हो

आज ही आज की कहें सुनें
क्यों सोचे कल, कल क्या हो
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मीना कुमारी की कविता
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मिना कुमारी   एक अभिनेत्री होने के साथ साथ, उर्दु के एक अच्छे कवि
माने जाते हैं। हमारा कोशिश यह है कि उनके कुछ कविता हम देवनागरी
मे यहाँ उपस्थित करें ।

1)      
यह न सोचो कल क्या हो               
2)      
हाँ, कोई और होगा तूने जो देखा होगा   
3)      
सुबह से शाम तलक          
4)      
मेरे महबूब        
5)      
मेरा माज़ी              
6)      
मैं जो रास्ते पे चल पड़ी
7)      मुहब्बत      
8)      
सियाह नक़ाब में उसका संदली चेहरा
9)      टुकड़े टुकड़े दिन बीता, धज्जी धज्जी रात मिली
10)     मुहब्बत
11)      रात सुनसान है          
12)      
दिन गुज़रता नहीं आता   
13)      
हर मसर्रत               
14)      
चांद तनहा है, आसमां तनहा   
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हाँ, कोई और होगा तूने जो देखा होगा

हाँ, कोई और होगा तूने जो देखा होगा
हम नहीं आग से बच-बचके गुज़रने वाले

न इन्तज़ार, न आहट, न तमन्ना, न उमीद
ज़िन्दगी है कि यूँ बेहिस हुई जाती है

इतना कह कर बीत गई हर ठंडी भीगी रात
सुखके लम्हे, दुख के साथी, तेरे ख़ाली हात

हाँ, बात कुछ और थी, कुछ और ही बात हो गई
और आँख ही आँख में तमाम रात हो गई

कई उलझे हुए ख़यालात का मजमा है यह मेरा वुजूद
कभी वफ़ा से शिकायत कभी वफ़ा मौजूद

जिन्दगी आँख से टपका हुआ बेरंग कतरा
तेरे दामन की पनाह पाता तो आंसु होता

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सुबह से शाम तलक

सुबह से शाम तलक
दुसरों के लिए कुछ करना है
जिसमें ख़ुद अपना कुछ नक़्श नहीं
रंग उस पैकरे-तस्वीर ही में भरना है
जिन्दगी क्या है, कभी सोचने लगता है यह ज़हन
और फिर रूह पे छा जाते हैं
दर्द के साये, उदासी सा धुंआ, दुख की घटा
दिल में रह रहके ख्याल आता है
जिन्दगी यह है तो फिर मौत किसे कहते हैं ?
प्यार इक ख्वाब था, इस ख़्वाब की ता'बीर न पूछ
क्या मिली जुर्म-ए-वफ़ा की ता'बीर न पूछ  

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मेरे महबूब

मेरे महबूब
जब दोपहर को
समुन्दर की लहरें
मेरे दिल की धड़कनों से हमआहंग होकर उठती हैं तो
आफ़ताब की हयात आफ़री शुआओं से मुझे
तेरी जुदाई को बर्दाश्त करनें की क़ुव्वत मिलती है

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मेरा माज़ी

मेरा माज़ी
मेरी तन्हाई का यह अन्धा शिग़ाफ़
मेरी सांसों की तरह साथ मेरे चलता रहा
और मेरी नब्ज़ की मानिन्द मेरे साथ जिया
जिसको आते हुए जाते हुए अक्सर लम्हे
अपने एहसास को शिद्दत से तपीश देते रहें
ज़ख़्म की आँख से टपका हुआ यह गर्म लहू
दूसरे लोगों की तस्कीन का सामान हुआ
कोइ ऐसा भी न था जिसने इसे परखा हो
या अचानक ही पलट आया हो, पहचाना हो
मेरे माज़ी !
मेरे हमराज़ !
मेरी जलती उदासी के शरीक
तेरी आहें, तेरे नासूर, तेरे दर्द तमाम
उनसे रिश्ता है मेरा, आज ये सब मेरे हैं

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मुहब्बत

मुहब्बत
बहार की फूलों की तरह मुझे अपने जिसम के रोएं रोएं से
फूटती मालूम हो रही है
मुझे अपने आप पर एक
ऐसे बजरे का गुमान हो रहा है जिसके रेशमी बादबान
तने हुए हों और जिसे
पुरअसरार हवाओं के झोंके आहिस्ता आहिस्ता दूर दूर
पुर सुकून झीलों
रौशन पहाड़ों और
फूलों से ढके हुए गुमनाम जज़ीरों की तरफ लिये जा रहे हों
वह और मैं
जब ख़ामोश हो जाते हैं तो हमें
अपने अनकहे, अनसुने अलफ़ाज़ में
जुगनुओं की मानिंद रह रहकर चमकते दिखाई देते हैं
हमारी गुफ़्तगू की ज़बान
वही है जो
दरख़्तों, फूलों, सितारों और आबशारों की है
यह घने जंगल
और तारीक रात की गुफ़्तगू है जो दिन निकलने पर
अपने पीछे
रौशनी और शबनम के आँसु छोड़ जाती है, महबुब
आह
मुहब्बत !

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सियाह नक़ाब में उसका संदली चेहरा

सियाह नक़ाब में उसका संदली चेहरा
जैसे रात की तारिकी में
किसी ख़ानक़ाह का
खुला और रौशन ताक़
जहां मोमबत्तियाँ जल रही हो
ख़ामोश
बेज़बान मोमबत्तियाँ
या
वह सुनहरी जिल्दवाली किताब जो
ग़मगीन मुहब्बत के मुक़द्दस अशआर से मुंतख़ीब हो

एक पाकीज़ा मंजर
सियाह नक़ाब में उसका संदली चेहरा
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टुकड़े टुकड़े दिन बीता, धज्जी धज्जी रात मिली

टुकड़े टुकड़े दिन बीता, धज्जी धज्जी रात मिली
जितना जितना आँचल था, उतनी ही सौग़ात मिली

रिमझिम रिमझिम बूंदों में, ज़हर भी है और अमृत भी
आँखे हंस दी दिल रोया, यह अच्छी बरसात मिली

जब चाहा दिल को समझें, हंसनें की आवाज़ सुनी
जैसे कोई कहता हो, ले फिर तुझको मात मिली

मातें कैसी घातें क्या, चलते रहना आठ पहर
दिल सा साथी जब पाया, बेचैनी भी साथ मिली

होंठों तक आते आते, जाने कितने रूप भरे
जलती बुझती आंखों मे, सादा सी जो बात मिली

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मैं जो रास्ते पे चल पड़ी

मैं जो रास्ते पे चल पड़ी
मुझे मंदिरों ने दी निदा
मुझे मसजिदों ने दी सज़ा
मैं जो रास्ते पे चल पड़ी

मेरी सांस भी रुकती नहीं
मेरे पाँव भी थमते नहीं
मेरी आह भी गिरती नहीं
मेरे हात जो बड़ते नहीं
कि मैं रास्ते पे चल पड़ी

यह जो ज़ख़्म कि भरते नहीं
यही ग़म हैं जो मरते नहीं
इनसे मिली मुझको क़ज़ा
मुझे साहिलों ने दी सज़ा
कि मैं रास्ते पे चल पड़ी


सभी की आँखें सुर्ख़ हैं
सभी के चेहरे ज़र्द हैं
क्यों नक्शे पा आएं नज़र
यह तो रास्ते की ग़र्द हैं
मेरा दर्द कुछ ऐसे बहा

मेरा दम ही कुछ ऐसे रुका
मैं कि रास्ते पे चल पड़ी

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मुहब्बत

मुहब्बत
क़ौस ए कुज़ह की तरह
क़ायनात के एक किनारे से
दूसरे किनारे तक तनी हुई है
और इसके दोनों सिरे
दर्द के अथह समुन्दर में डुबे हुए हैं

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रात सुनसान है

रात सुनसान है
तारीक है दिल का आंगन
आसमां पर कोइ तारा न जमीं पर जुगनू
टिमटिमाते हैं मेरी तरसी हुइ आँखों में
कुछ दिये
तुम जिन्हे देखोगे तो कहोगे : आंसू

दफ़अतन जाग उठी दिल में वही प्यास, जिसे
प्यार की प्यास कहूं मैं तो जल उठती है ज़बां
सर्द एहसास की भट्टी में सुलगता है बदन
प्यास - यह प्यास इसी तरह मिटेगी शायद
आए ऐसे में कोई ज़हर ही दे दे मुझको

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दिन गुज़रता नहीं आता

दिन गुज़रता नहीं आता
रात काटे से भी नहीं कटती
रात और दिन के इस तसलसुल में
उम्र बांटे से भी नही बंटती

अकेलेपन के अन्धेरें में दूर दूर तलक
यह एक ख़ौफ़ जी पे धुँआ बनके छाया है
फिसल के आँख से यह छन पिघल न जाए कहीं
पलक पलक ने जिसे राह से उठाया है

शाम का उदास सन्नाटा
धुंधलका, देख, बड़ जाता है
नहीं मालूम यह धुंआ क्यों है
दिल तो ख़ुश है कि जलता जाता है

तेरी आवाज़ में तारे से क्यों चमकने लगे
किसकी आँखों की तरन्नुम को चुरा लाई है
किसकी आग़ोश की ठंडक पे है डाका डाला
किसकी बांहों से तू शबनम उठा लाई है

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हर मसर्रत

हर मसर्रत
एक बरबादशुदा ग़म है
हर ग़म
एक बरबादशुदा मसर्रत
और हर तारिकी एक तबाहशूदा रौशनी है
और हर रौशनी एक तबाहशूदा तारिकी
इसि तरह
हर हाल
एर फ़नाशूदा माज़ी
और हर माज़ी
एक फ़नाशूदा हाल

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चांद तनहा है, आसमां तनहा

चांद तनहा है, आसमां तनहा
दिल मिला है कहां कहां तनहा

बुझ गई आस, छुप गया तारा
थरथराता रहा धुआँ तनहा

जिन्दगी क्या इसि को कहते हैं
जिस्म तनहा है और जां तनहा

हमसफ़र कोई गर मिले भी कहीं
दोनों चलते रहें यहां तनहा

जलती बुझती सी रौशनी के परे
सिमटा सिमटा सा एक मकां तनहा

राह देखा करेगा सदियों तक
छोड़ जाएंगे यह जहां तनहा

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