अब्दुर्रहीम खानखाना (रहीम)
(1556 - 1627)
अब्दुर्रहीम खानखाना(रहीम) का जन्म लाहोर मे हुआ था। पिता बैराम खाँ सम्राट
अकबर के संरक्षक थे, जिन पर विद्रोह के आरोप लगाया गया और उन्हे हज करने मक्का
भेज दिया गया था। पर मार्ग पर हि उनका शत्रु मुबारक अली ने उनकी हत्या कर दी। अकबर
नें रहीम की शिक्षाका समुचित प्रबंध किया और वे चार साल की अवस्था से जीवन के अंतिम
समय तक मुगल दरबार में रहे। उनके गुणों से प्रभावित होकर अकबर ने उन्हें 'मिरजा खां'
की उपाधि दी थी। वे अकबर के प्रधान सेनापति, मंत्री और उसकी सभा के नवरत्न भी रहे।
१६२7 में उनका देहांत हुआ था।

अरबी, फारसी तथा संस्कृत का उन्हें अच्छा ज्ञान था। रहीम बड़े भावुक कवि और उत्कृष्ट
विद्वान थे। उनका भाषा ब्रज और अबघी है। इन्होंने नीति, भक्ति, वैराग्य, ज्ञान और जीवन
के गहन और व्यावहारिक विषयों पर दोहे लिखे, जो आज भी प्रासंगिक है।
रहीम के दोहे