रहीम के दोहे कोइ भि कविता पर क्लिक् करते हि वह आपके सामने आ जायगा। |
रहीम के दोहे || 1 || एकै साधे सब सधैं, सब साधे सब जाय । रहिमन मूलहि सींचिबो, फूलै फलै अघाय ।। || 2 || कह रहीम कैसे निभे, बेर केर का संग । यै डोलत रस आपने, उनके फाटत अंग ।। || 3 || खीरा सिर ते काटिए, मलियत लौन लगाय । रहिमन करुए मुखन को, चहियत इहै सजाय ।। || 4 || छिमा बड़ेन को चाहिए, छोटन को उत्पात । का रहीम हरि को घटयौ, जो भृगु मारी लात ।। || 5 || जे गरीब सो हित करै, धनि रहीम वे लोग । कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताइ जोग ।। || 6 || जे अंचल दीपक दुरयौ, हन्यौ सो ताही गात । रहिमन असमय के परे, मित्र शत्रु हवै जात ।। || 7 || जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय । बारे उजियारे लगे, बढ़े अँधेरो होय ।। || 8 || टूटे सुजन मनाइये, जो टुटे सौ बार । रहिमन फिरि-फिरि पोइए, टुटे मुक्ताहार ।। || 9 || रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजै डारि । जहाँ काम आवे सुई, कहा करै तरवारि ।। || 10 || बड़े बड़ाई नहिं करैं, बड़े न बोलें बोल । रहिमन हिरा कब कहै, लाख टका मेरो मोल ।। || 11 || बसि कुसंग चाहत कुसल, यह रहीम जिय सोस । महिमा घटि समुद्र की, रावन बसयौ परोस ।। || 12 || तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान । कहि रहीम परकाज हित, संपति सँचहि सुजान ।। || 13 || रहिमन याचकता गहे, बड़े छोट हवै जात । नारायन हूँ को भयौ, बावन अँगुर गात ।। || 14 || कह रहीम संपति सगे बनत बहुत बहु रीत । बिपत-कसौटी जो कसे, तेई साँचे मीत ।। || 15 || जो बड़ेन को लघु कहे, नहिं रहीम घटि जांहि । गिरिधर मुरलीधर कहे, कुछ दुख मानत नांहि ।। || 16 || धनि रहीम जल पंक को, लघु जिय पियत अघाय । उदधि बड़ाई कौन है, जगत पियासो जाय ।। || 17 || तैं रहीम मन आपुनो, कीन्हो चारु चकोर । निसि बासर लाग्यौ रहे, कृष्णचंद्र की ओर ।। || 18 || रहिमन यहि संसार में, सब सो मिलिए धाइ । ना जाने केहि रूप में, नारायण मिलि जाइ ।। || 19 || दुरदिन परे रहीम कहि, दुरथल जैयत भागि । ठाढ़े हूजत घूर पर, जब घर लागति आगि ।। || 20 || अब रहीम मुसकिल परी, गाढ़े दोऊ काम । साँचे ते तो जग नहीं, झूठे मिलैं न राम ।। . मिलनसागर उपर |