स्वप्न मधुकर का कविता
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1।  आज का अभिमण्यु
2।  गुलाब वनाम गेहुँ
3।  चाँद         
4।
अंगूर का प्याला       
5।  
सयानी बिल्ली              
6।  
माँ की ममता                
7।  
जंगी             
8।  
सुनामी     
   
*
आज का अभिमण्यु

फुटपाथ पर जन्मा--
ये बालक !
इस शहर है--
जिसका पालक ||
कोई खिलाये तो,
खाता वह--
याचना नहीं करता ।
पाँच साल का नंगा बालक--
कैसे सड़क पार कर जाता ||
पार्क स्ट्रीट में दौड़ती गाड़ीयाँ
अचम्भित सा रह जाता ।
चक्रब्युह के शिकंजों मे वह--
रोज निकल जाता ।
शहर के सभी लोगों नें--
उसे सलाम जताता ।
आज का वीर है वह--
अभिमण्यु कहलाता ||

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 गुलाब वनाम गेहुँ

गुलाब कहा गेहुँ से-
तेरे पास क्या हैं ?
     देखने में तु भद्दा हैं,
         नाती सी-छोटी कंकर हैं ।

और मैं, सुन्दर हूँ-
अति सुन्दर हूँ-
    खुशबूदार हूँ-
         लोगों का मन बहलानें में
              कामयाब - हूँ ।

गेहुँ कहा गुलाब से-
मत कर अपनी बड़ाई-
    अईयासो का अईयासी,
         तुझे क्या - पता-
              कितने लोग हैं भूखे-प्यासी ।

मैं भूखों का रोटी हूँ-
बच्चों का भविष्य हूँ-
    दुनियों का शक्ति हूँ-
         ईतिहास में अमर हूँ ||

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              चाँद

अरे क्या रूप है-
कैसी शीतल रौशनी,
अपनी कलंक लेकर-
जग में बैठी विश्वरानी ||

                   सूरज से गुण लेकर-
                   अपने में इठलाती हों,
                   दिल मे तेरे कोई मोल नहीं-
                   जग को सिर्फ हँसाती हो ||

किसीने सच कहा-
भूख की रोटी हो तू,
जली हुई, झलसी हुई-
मरिचीका हैं तू ||

                   कितने बच्चों का लोढ़ी हैं तू-
                   कितने शायरों का ख्वाब है तू,
                   कितने बनीता के सिंदूर हैं तू-
                   पर, अपने आप कलंक है तू ||


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अंगूर का प्याला

शिक्षा से शिक्षित बनें-
बने पंडित, तो कोई नवाबसाही ।
इस पुस्तक में ज्ञान पेड़ है-
जो सबके हितकारी ||

इस पुस्तक से-
हर मजहब के लोग,
ज्ञान लेते बारी-बारी ।
इसमे न कोई बैरी बनें-
न कोई योगी यारी ।
हिंदू-मुसलिम, सिख-ईसाई,
नमन करे इसे बारी-बारी ||

इसमे है इतनी दम-
एक ही मजहब - एक ही धर्म,
सबको सिखाए एक ही कर्म-
वह है मानवता का धर्म ।
घुट-घुट कर पीते गये-
दुर्जन क्या सज्जन,
ये है अमृत की प्याली,
अति सुन्दर गुणज्ञानी-
पाकर सब भूल जाए,
पिछले सभी कहानी ||


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    सयानी बिल्ली

दुबली-पतली काली बिल्ली-
         मंत्री बनने चली दिल्ली ।
धोती-कुर्ता पहनके वह-
         कंधे में लटकाके थैली ।
पान खाकर हँसी बिल्ली-
         हाथ में लिए मैचिस् की तिल्ली ।
दिल्ली जाकर भाषण दी- म्यैंऊँ-म्यैंऊँ-
         सुनने वालोंने उड़ाई खुब खिल्ली ।
उसे देखने आई कुतियाँ पिल्ली-
         दुम-दबाकर मंच से भागी बिल्ली ।


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 माँ की ममता

माँ की कोख से-
              निकली ऐसी चिंख,----
जनमते ही बच्चा अलविदा कहा-
              सोए आँचल के बीच ||
माँ को पता नहीं,
              कहां गया उनका बच्चा,
होश संभाली तो,
              "पागल" बनी थी एक सच्चा ||
अंगन में पाँव पसारे बैठी थी,
              आखें बिछाए राह देखती थी ।
कहींसे एक बार आहट सुनी-
              "देखो माँ - मैं आ गया" -
सिने से लिपट चुम्बन करती-
              न जाने कितने लोढ़ी सुनाती ।
पागल माँ की मृत नन्हा-
              फिर से दिल को पिघला दिया ।
एक हवा का झोको ने-
              माँ कि ममता बिखर दिया ||


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    जंगी

क्या है इन जंगी संगठनों में ?
होल-बिल्ला कुबत ! हाय अल्ला,
क्या नाम है संगठनों का-
लस्करे तैबा, नकशाल तो,
किसी का आल्फा ||
कौन सी आग है, इनके सिने में-
कितने हैं भूख ?
कितने मासुमों का कतल किए-
न जाने कितने है दुःख ।
पर उन्हे क्या मिला ?
कोई तो बता दो ।
अल्लाह के फरिश्ते हैं सब-
सब को गले मिला लो ||

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            सुनामी

वह एक मासुम बच्चा था-
              जो मा की गोद में दुध पी रहा था ।
हँसमुख था वह अभिमानी था,
              प्यारा सा बच्चा दुध पी रहा था ||
शायद उसका पेट भरा भी न था-
              सुनामी क्या है जानता भी न था ।
एकाएक समुन्दर तल से लहरें उठी-
              भयंकर एक मौत का पैगाम था ।
कैसी थी ये लहरें ? क्या नाम था ?
              पलमें निगल गई सबको, सुनामी जिनका नाम था ||

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