वाजीद अली शाह
(1822 -1887)
नवाब वाजीद अली शाह का कविता
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नवाब वाजीद अली शाह   का पुरा नाम " मः हजरत खालीद, अबुल मनसूर
नासिर उद्दीन, पादशाह-ई-आदिल, कैजर-ई-जमान, आरंघा सुलतान-ई-आलम, महम्मद
वाजीद अली शाह बहादूर " ।   वे अवघ के दसवाँ तथा अंतीम नवाब थे ।  सन   1847
से शुरू होकर उनका शासनकाल सिर्फ दस साल बाद सन   1856   मे अंग्रेजों द्वारा समाप्त
कर दिया गया । उनको तड़िपार का सजा देकर कलकत्ता के निकट मेटिया बुर्ज में भेज
दिया गया था, जहां पर वे उनके जीवन के अंतीम दिन तक थे । इन दिनों उनका
पेनशन था सालाना दस लाख रुपया ।
वे नाटक, संगीत, कथक नृत्य आदि के शौकीन थे और जहां भी गये, अपने छत्रछाया में
ठुंरी, गजल, कथक आदि कलाओं का विकास करने का पुरा कौशिश किया । वे खुद भी
एक कवि थे । वतन से बिछड़ने का दुख कभी न भुला पाये । इसि विषय पर उनका
लिखा गीत "बाबुल मोरा" हुत मशहूर है । वे उर्दू में लिखते थे ।