"बात है एक रात की हो रही बरसात थी जा रहा था मैं भीगते -२ संग किसी की याद थी"
"भीगते-२ पहुँचा मैं किसी मोड पर नहीं आ रहा था नज़र कोई रोड पर मुझे लगा मैं खो गया हूँ चल रहे हैं कदम, मैं सो गया हूँ"
"तभी दी किसी ने आवाज मुझे कहाँ जा रहा है यूँ भीगते हुए देखा चौंककर, नहीं आया कोई नज़र अब तो लगने लगा मुझे अंधेरे से डर"
" तभी आया ये ख्याल मुझे कि थी आवाज ये मेरे मन की जिसमें भरी है उमंग मेरे जीवन की यही सोचते-२ मैं रात भर चलता रहा कि बरसात कि रात में क्या रात भर मैं करता रहा बरसात कि रात में क्या रात भर मैं करता रहा
"आज फिर पतझड़ का मौसम आया है बनकर बेकरारी सबके दिलों पर छाया है बेकरार-ओ-बेबस हैं सब इस पतझड़ में इसने सभी का चैन चुराया है आज फिर पतझड़ का मौसम आया है"
"पतझड़ में पत्ते साख से बिछड़ जाते हैं अजनबी की तरह न कभी वापस आते हैं कहाँ जाते हैं नहीं जानता कोई बस दिलों में अपनी यादें छोड़ जाते हैं"
"कहते हैं लोग पतझड़ बीत जाएगा कभी न कभी बसंत भी आएगा पर जो बिछड़ गए हैं इस पतझड़ में हमसे कोई बताये उन्हें कौन वापस लायेगा"
"इस दिल से निकलती है दुआ ऐ-रब ऐसा पतझड़ न किसी के जीवन में आए न बिछ्ड़ें उससे कभी उसके अपने वो न एक साख से टूट पत्ता बन जाए"
"आज हमारे घर एक नन्ही खुशी आई है बनकर मुस्कान सबके लबो पर छाई है देखते हैं सब प्यार से बार बार उसे जो बनकर हमारे लिए एक तोहफा आई है आज हमारे घर एक नन्ही खुशी आई है"
"बसी है उसी में जान हम सबकी लगती है वो एक नन्ही परी सी देखता है उसे कोई जब भी , कहीं भी कहता है हमने कुदरत की मेहरबानी पाई है आज हमारे घर एक नन्ही खुशी आई है"
"मैं उसे देख कर फूला नहीं समता हूँ सारे जहाँ की खुशियाँ संग उसी के पाता हूँ बनकर एक आफ़ताब उसने रौशनी फैलाई है आज हमारे घर एक नन्ही खुशी आई है"
"निकला हूँ एक अनजाने सफर पर न मालूम जाना कहाँ, जाना किधर, बस चला हूँ नापते हुए डगर मन में है शंका फिर भी मगर की क्या है ये ज़िंदगी का सफर"
"जिसे करते हैं लोग पर हैं बेखबर इतने बेखबर कभी न जान पाये कब मौत ने लिया आकर उनको धर मैं सोचने को हूँ मजबूर साहिल कैसा सफर है ये ज़िंदगी का सफर"
"जहाँ पल में लोग मिलते हैं, बिछड़ते हैं यादें बनकर कर जाते हैं दिल में घर ये कैसा सफर,न मालूम जाना कहाँ जाना किधर लगता है नहीं कोई सरहद-ऐ-सफर फिर भी चला जा रहा हूँ अनजानी डगर"
"न जाने साहिल कहाँ जाए ये डगर फिर भी चल रहा है सफर मन में है बस यही बात मगर ज़िंदगी का सफर , ये कैसा सफर"
"ये जो है ज़िंदगी बस एक नाम है बाकी सब इसमे नीरस, बेनाम है न कोई इसे समझ पाया था,न कोई इसे समझ पाया है ये तो चाँद सितारों से भी परे की बात है ये जो है ज़िंदगी बस एक नाम है"
"कुछ लोग ज़माने में ऐसे भी होते हैं पाकर ज़िंदगी बहुत खुश होते हैं मगर नादान न समझकर इसका मोल इसे यूँ ही मयकदों में खोते हैं आती है जब मौत मिलने गले तब है ज़िंदगी, है जिंदगी रोते हैं"
"इसलिए कहता हूँ साहिल न कर जिंदगी से प्यार इतना पड़े पछताना देख कर झूठा सपना ये जिंदगी बस एक हसीं ख्वाब है शायद इसलिए ही जिंदगी इसका नाम है"
"कागज़ की किश्ती है जीवन ये मेरा बारिश का पानी है इसका अँधेरा उतरती है, डूबती है ये किश्ती मेरी ढूँढने पर भी नहीं मिलता किनारा कब उतरेगी जाने ये किश्ती मेरी है मुझे तूफ़ान का भय सारा कागज़ की किश्ती है जीवन ये मेरा बारिश का पानी है इसका अँधेरा"
"जाती हैं जहाँ तक नज़रें ये मेरी आता है नज़र बस अश्को का मेला नहीं रोक सकता मैं अश्क किसी के मुझको भी है इन अश्को ने घेरा किश्ती मेरी लहराती है इन पर नहीं इसमें कोई दोष ऐ मांझी तेरा कागज़ की किश्ती है जीवन ये मेरा बारिश का पानी है इसका अँधेरा"
"जीवन मेरा एक जलता चिराग है दामन में जिसके केवल आग है रोशन है जहाँ सभी का इससे सभी केवल इसके कर्ज़दार हैं जलने की नहीं ख्वाहिश इसकी फिर भी जलने को बेकरार है जीवन मेरा एक जलता चिराग है दामन में जिसके केवल आग है"
"पहलू में इसके नहीं कोई आता जलने का डर है सबको सताता दूर से लेते हैं सभी तपिश इसकी नहीं गले से इसे कोई लगाता फिर भी जलना इसका काम है जीवन मेरा एक जलता चिराग है दामन में जिसके केवल आग है"
एक दिन चला मैं किसी डगर पर रुके पग मेरे सुनकर कुछ करूँ स्वर चला उधर मैं सुन ये कोलाहल देखा किए थे शोक कुछ जन एक मृत पर बिलख २ कर रो रही थी माता उसकी थाम कलाई बहन पड़ी थी बेसुध उसकी नहीं थम रहे थे आंसू उसके तात के बिछ्ङ गया हो जैसे कोई पात डाल से नाम ले ले कर पुकार रहे थे भाई उसके कर रहे करुण पुकार पितामह भी उसके दो पग चलने पर ही डोला था उनका तन देख जनों का हाल सिहर गया मेरा मन लेके चले जब चार जन उस मृत को पुकार उठी माँ "मत ले जाओ लाल मेरे को" सोया है गहरी नींद में अभी जाग उठेगा उठकर सबसे पहले मेरे गले लगेगा पुकारती रह गई यही बस माता उसकी चला गया वो बस बन गया मिटटी
"जीवन की ये उलझनें है कैसी न जिसे मैं सुलझा पाता हूँ कोशिश में इसे सुलझाने की मैं ख़ुद ही उलझ जाता हूँ जीवन की ये उलझनें है कैसी न जिसे मैं सुलझा पाता हूँ"
"फंसकर रह गया हूँ मैं इनमें न कभी इनसे निकल पाता हूँ चाहता हूँ मैं बचना इनसे सामने इनके मैं असहाय हो जाता हूँ जीवन की इन उलझनों की खातिर मैं ख़ुद को मिटाने पर आमादा हूँ"
"बनकर रह गया हूँ मैं कैदी इनका न इनसे कभी मैं बच पाता हूँ जीवन के हर मोड़ पर साहिल इन उलझनों को खड़ा पाता हूँ जीवन की ये उलझनें है कैसी न जिसे मैं सुलझा पाता हूँ"
"फूलों की ये नाजुक, कोमल पंखुडियां लगती हैं संकुचाई सी, सर्माई सी ज्यों छिपा लिया हो बच्चो को माँ ने आँचल में फिर भी है थोडी लजाई,थोडी घबराई सी कितनी सुंदर लगती हैं ये कोमल पंखुडियां जैसे हो कोई नवेली दुल्हन सकुंचाई सी छूने में इनको लगता है ये डर मुझको हो न जाए कोई मुरझाई सी, कुम्लहाई सी फूलों की ये नाजुक, कोमल पंखुडियां लगती हैं संकुचाई सी सर्माई "
"बीत गई गोधूली बेला लगे प्रात: ये नया नवेला आन मिला है नया सवेरा सुंदर कितना प्यारा प्यारा बीत गई वो भोर सुहानी लगती है अब एक कहानी " "नया साल है आया देखो संग लाया है खुशियाँ देखो बने मुबारक साल तुम्हे ये मिले खुशियाँ तुम्हे अपार न हो दुःख की छाया तुम पर बसे सबका प्यार ही प्यार"
"बारिश की ये नन्ही बूँदें खेल रही हैं जल थल में आकर नील गगन से ये समां रही एक जल में शांत स्वर से गिरी धारा पर मिट गई एक ही पल में बारिश की ये नन्ही बूँदें खेल रही हैं इस थल में"
"छोड़ तात का रैन बसेरा निकली एक अनजानी धुन में जाने क्या है अभिलाषा इनकी निकल पड़ी एक ही पग में करने चली शांत धरा को मिटकर ख़ुद ही इस जग में बारिश की ये नन्ही बूँदें खेल रही हैं जल थल में"