सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा हम बुलबुलें हैं इसकी ये गुलसितां हमारा गुरबत में हो अगर हम, रहता है दिल वतन में समझो वहीं हमें भी दिल हो जहां हमारा परवत वो सबसे उंचा हमसाया आसमां का वो संतरी हमारा, वो पासबां हमारा गोदी में खेलती हैं इसकी हज़ारों नदियां गुलशन है जिसके दम से रश्के-जना6 हमारा ऐ आबे-रौदे-गंगा ! वै दिन है याद तुझको उतरा तेरे किनारे जब कारवां हमारा मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना हिन्दी हैं हम, वतन है हिन्दोस्तां हमारा युनान-ओ-मिस्र-ओ-रोमा सब मिट गये जहां से अब तक मगर है बाक़ी नामों-निशां हमारा कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी सदियों रहा है दुशमन दौरे-ज़मां हमारा “इक़बाल”! कौई मरहम अपना नहीं जहां में मालुम क्या किसी को दर्दे-निहां हमारा
लब पे आती है दुआ बनके तमन्ना मेरी जिन्दगी शम्मअ की सूरत हो खुदाया मेरी दूर दुनिया का मेरे दम से अंधेरा हो जाए हर जगह मेरे चमकने से उजाला हो जाए हो मेरे दम से युंही मेरे वतन की ज़ीनत जिस तरह फुल से होती है चमन की ज़ीनत ज़िन्दगी हो मेरी परवाने की सूरत यारब इल्म की शम्मअ से हो मुझको मोहब्बत यारब हो मेरा काम ग़रीबों की हिमायत करना दर्द-मन्दों से, ज़ईफ़ों से मोहब्बत करना मेरे अल्लाह ! बुराई से बचाना मुझको नेक जो राह हो उस राह पे चलाना मुझको
ऐ हिमाला, ऐ फ़सीले-किशवरे-हिन्दोस्तां चूमता है तेरी पेशानी को झुककर आसमानं तुझमें कुछ पैदा नहीं देरीना-ऱोजी के निशां तु जवां है गर्दिशे-आम-ओ-सहर के दरमियां एक जलवा था कलीमे-तूरे-सीना के लिए तु तजल्ली है सरापा चश्मे-बीना के लिए इम्तिहाने-दीदा-ए-ज़ाहिर में कोहिस्ता है तू पासबां अपना है तू, दीवारे-हिन्दोस्तां है तू मलवा-ए-अव्वल फ़लक जिसको हो, वो दीवां है तू सू-ए-ख़िलवतगाहे-दिल दामनकशे-इन्सां है तू बर्फ़ ने बांधी है दस्तारे-फ़ज़ीलत तेरे सर ख़न्दाज़न है जो कुलाहे-मेहरे-आलमताब पर तेरी उम्र-रफ़्ता की इक आन है अहदे-कुहन वादियों में हैं तेरी काली घटा ख़ोमा-ज़न चोटियां तेरी सुरैया से है सरगर्मे-सुख़न तू ज़मीं पर और पहना-ए-फलक तेरा वतन
ख़िरदमन्दों से क्या पूंछू कि मेरी इब्तिदा क्या है कि मैं इस फ़िक्र में रहता हूं मेरी इन्तहा क्या है ख़ुदी को कर बुलन्द इतना कि हर तक़दीर से पहले ख़ुदा बन्दे से खुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है मुक़ामे-गुफ्तगू क्या है अगर मैं कीमियागर हूं यही सोज़े-नफ़स है और मेरी कीमिया क्या है नज़र आई मुझे तक़दीर की गहराइयां इसमें न पूछ ऐ हमनशीं मुझसे बचश्मे-सुरमा सा क्या है नवा-ए-सुब्ह-गाही के जिगर ख़ूं कर दिया मेरा ख़ुदाया ! जिस ख़ता की यह सज़ा है वह ख़ता क्या है अगर होता तो मजज़बे फ़िरंगी इस ज़माने में तो “इक़बाल” उसको समझाता मुक़ामे-किब्रिया क्या है
नशा पिला के गिराना तो सबको आता है मज़ा तो जब है गिरतों को थाम ले साकी जो बादाकश थे पुराने वो उठते जाते हैं कहीं से आबे-बक़ा-ए-दवाम ले साक़ी कटी है रात तो हंगामा-गुस्तरी में तिरी सहर क़रीब है अल्ला का नाम ले साक़ी हर ज़ाएरे-चमन से यह कहती है ख़ाके-बाग़ ग़ाफ़िल न रह जहान में गरदूं की चाल से सींचा गया है ख़ूने-शहीदां से इसका तुख़म तू आंसुओं का बुख़्ल ना कर इस निहाल से
बरतर अज़ अन्देशा-ए-सूद-ओ-ज़ियां है ज़िन्दगी है कभी जां और कभी तसलीमे-जां है ज़िन्दगी तू इसे पैमाना-ए-इमरोज़-ओ-फ़र्दा से न नाप जाविन्दा पैहम दवां हरदम जवां है ज़िन्दगी अपनी दुनिया आप पैदा कर अगर ज़ीदों में है सिर्रे-आदम है ज़मीरे-कुनफ़िकां है जिन्दगी बन्दगी में घुटके रह जाती है इक जू-ए-कम-आब और आज़ादी में बहरे-बेकरां है ज़िन्दगी आशकारा है यह अपनी कुव्वते-तसख़ीर से गरचे इक मिट्टी के पैकर में निहां है ज़िन्दगी कुल्जुमे-हस्ती से तु उभरा है मानिन्दै-हुबाब इस ज़ियांख़ाने में तेरा इम्तिहां है ज़िन्दगी
चिश्ती ने जिस ज़मीं पर पैग़ामे-हक़ सुनाया नानक ने जिस चमन में वहदत का गीत गाया तातारियों ने जिसको अपना वतन बनाया जिसने हिजाज़ियों से दश्ते-ओरब छुड़ाया . मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है युनानीयों को जिसनें हैरान कर दिया था सारे जहां को जिसने इलम-ओ-हुनर दिया था मिट्टी को जिसकी हक़ ने, ज़र का असर दिया था तुर्को का जिसने दामन, हीरों से भर दिया था . मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है टुटे थे जो सितारे फ़ारस के आसमां से फिर ताब देके जिसने, चमकाए कहकशां से वहदत की लय सुनी थी, दुनिया ने जिस मकां से मीरे-अरब को आई, ठण्डी हवा जहां से . मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है बन्दे कलीम जिसके, परबत जहां के सीना नूहे-नबी का आकर ठहरा जहां सफ़ीना रिफ़्अत है जिस ज़र्मी की, बामे-फ़लक का ज़ीना जन्नत की ज़िन्दगी है, जिसकी फ़ज़ा में जीना . मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है
उठो मेरी दुनिया के (फ़र्माने-ख़ुदा)(फ़रिश्तों से) उट्ठो मेरी दुनिया के ग़रीबों को जगा दो काखं-ए-उमरा के दरे-दीवार हिला दो गरमाओ ग़ुलामों का लहू सोज़े-यक़ीं से कुंजश्के-फ़रोमाया को शाहीं से लड़ा दो सुलतानी-ए-जमहूर का आता है ज़माना जो नक़्शे-कुहन तुमको नज़र आये मिटा दो जिस खेत से दहक़ां को मयस्सर नहीं रोज़ी उस खेत के हर ग़ोशा-ए-गंदुम को जला दो मैं नाखुश-ओ-बेज़ार हूं मरमर की सिलों से मेरे लिए मिट्टी का हरम और बना दो
लबरेज़ है शराबे-हक़ीक़त से जामे-हिन्द सब फ़लसफ़ी है खिता-ए-मग़रिब के रामें-हिन्द यह हिन्दियों के फ़िक्रे-फ़लक-रस का है असर रिफ़्अत में आसमां से भी उंचा है बामे हिन्द इस देश में हुए हैं हज़ारों मलक-सरिश्त मशहूर जिनके दम से है दुनिया में नामे-हिन्द है राम के वजूद पे हिन्दोस्तां को नाज़ अहले-नज़र समझते हैं उसको इमामे-हिन्द एज़ाज़ इस चिराग़े-हिदायत का है यही रोशन-तर-अज़-सहर है ज़माने में शामे-हिन्द तलवार का धनी था, शुजाअत में फ़र्द था पाकीज़गी में, जोशे-मुहब्बत में फ़र्द था