तुम्हारी संवेदना
कहाँ खो गई हूँ मैं
तलाश कर रही हूँ खुद को
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लोगों के दिलों से निकलकर
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जाने कहाँ दफन हूँ मैं
निकाल लो मुझे इस
अंधेरे से बाहर
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यहाँ मुझे कुछ दिखता नहीं
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सभी के मन मैले हो गये हैं
और जिस्म पर धुंध बिछी है
उजाला आये भी तो कैसे
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मन का अंधेरा आगे खड़ा है
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कभी इन्हीं के दिलों में बसती थी मैं
हर दिल में था मेरा बसेरा
इस दुनिया में एक अस्तित्व था मेरा
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अब गुम हो चुकी हूँ मैं
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ढूँढ़ लाओ मुझे
क्योंकि मैं हूँ
तुम्हारी संवेदना
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लक्ष्मी पाल का कविता
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1)
तुम्हारी संवेदना
2)
आँसू
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मिलनसागर
आँसू
दामन थामकर जिन्दगी का उम्र भर
क्यूँ ना जाने हमेशा साथ रहता है आँसू
खुशियों का झोंका आये भी
तो फिर क्यों आँखों से बहता हैं आँसू
कहने को एक शब्द
पर ना जाने कितने अर्थो से बना है आँसू
छलक आने को बेताब रहता है,
ना जाने क्या-क्या बहाने ढूंढता है आँसू
थाम कर जाने किस दर्द का दामन
आँखों में फिर डबडबाता है आँसू
दुनिया से खुद को छुपाता हुआ
जाने किस कोने में सिमट जाता हैं आँसू
पलकों में खुद को छुपाता हुआ
जमाने से खुद को बचाता हैं आँसू
खुशियों का हाथ पकड़ कर भी
खुद को ना रोक पाता हैं आँसू
ढूंढता हैं तन्हाई अंधेरा हरदम
रोशनी में आने को बेकरार है आँसू
छुपा रहता हैं अंधेरों में ही हमेशा
अब उजालों का तलबगार हैं आँसू
कहता हैं आता हूँ खुशी और गम में
कहते हैं खारा कहलाता हैं आँसू
लोगों से कहकर, जमाने से सुनकर
खुद अपनी कहानी को लिखता हैं आँसू।
. ******** 04-02-2009
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