जनकवि नागार्जुन का कविता   
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नागार्जुन   का पैदाइशी नाम वैद्यनाथ मिश्र था । "नागार्जुन" के अलावा वे "यात्री" उपनाम से भी लिखा करते थे।
उनका जन्म बिहार में दरभंगा जिला का "तरौनी" गाँव में हुआ था । मैथिली ब्राह्मण पिता गोकुल मिश्र निर्दय तथा चरित्रहीन
स्वभाव के थे। 18 या 19 साल के उम्र णें ही कवि का विवाह अपराजीता देवी से कर दिया गया था। विबाह के कुछ ही
दिन बाद उनसे और रहा न गया और घर परिवा छोड़कर हिंदी तथा संस्कृत का पीठस्थान वारानसी जा पहुँचे । इसि तरह
उनका बौद्ध भिक्षुओं के तरह परिव्राजक के जीबन शुरू हुआ । इसी समय उनका परिचय हुआ पं राहुल संस्कृत्यायन से
और वह बौद्ध धर्म अपना लिये । 1936 में कलक्त्ता, दक्षिण भारत होकर वे श्रीलंका का भी दौड़े पे गए । इसके बाद वे
कार्ल मार्क्स के विचारों से प्रभावित हुए जो उनके कविता का एक प्रधाण सुर भी है। 1939 में अंबरी किसानों के आन्दोलन
मे शामिल होकर कारावरण किये ।
अब वे जन कवि के नाम से जानने लगे थे । मैथिली, हिन्दी तथा बंगला (शरतचंद्र चट्टोपाध्याय के द्रारा भी प्रभावित हुए
थे) मे लिखते थे । कुछ कविता परचे के जैसे छाप कर स्वयं रेल गाड़ीयों मे बेचते थे! उपन्यासकार नागार्जुन भी बहुत
प्रसिद्ध हुए। शपथ (1948), चना जोर गरम (1952), बूड़ भार (1941), विलाप (1941), चित्रा (1949), द्वन्द्व, एवं और कई
जैसे कृतियाँ युगधारा, खिचड़ी विप्लव देखा हमने, पत्रहीन नग्न गाछ, प्यासी पथराई आंखें, इस गुब्बारे की छाया में ,पारो,
उग्रतारा, अभिनन्दन, इमरतिया ,एक व्यक्ति एक युग (निराला के बारे में संस्मरण), आसमान में चंदा तैरे (कहानी संग्रह),
चार चोर, षटशास्त्री (बाल कथाएं), पत्रहीन नग्न गाछ (मैथिली काव्य-संग्रह) , उनके उल्लेखनीय रचना में से है।  

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srimilansengupta@yahoo.co.in                                                     सूत्रः-विकिपिडिया
जनकवि नागार्जुन
1911 ~ 5 नवम्बर 1998