जब से तुम बिछड़े मेरे प्रभु, कबहुं ना पायो चैन। सबद सुणत मेरी छतियां कांपैं, मीठै लागै बैन ।। बिरह कथा कासूं कहूं सजनी, बह गई करवट ऐन। कलन परत पल हरि मग जोवत, भई छमासी रैन ।। ‘मीरा’ को प्रभु कब रे मिलोगे, दुख मेटण सुख देन ।।
पचंग चोल पहर सखी मैं झिरमिट खेलन जाती। ओह झिरमिट मां मिल्यो सांवरो खोल मिली तन गाती ।। जिनका पिय परदेस बसत हैं लिख-लिख भेजे पाती। मेरे पिया मेरे हीये बसत हैं ना कहुं आती जाती ।। चन्दा जाएगा सूरज जाएगा जाएगी धरण आकासी। पवन प्राणी दोनुं ही जाएंगे अटल रहे अविनासी ।। मैं गिरधर के रंग राती ।।