मिर्ज़ा ग़ालिब का पुरा नाम मिर्ज़ा आसादुल्लाह खान ग़ालिब । उनका जन्म आकराबाद में हुआ था, जो की आज का आगरा है । वे फारसी तथा उर्दू दोनों भाषाओं में कविता लिखते थे लेकिन उर्दू कविताओं के लिये जयादा मशहूर हैँ । वे हिन्दुस्तान तथा मुघल सलतनत के अंतीम मुघल सम्राट बहादुर शाह ज़फ़र के सभाकवि थे। सम्राट खुद एक कवि होने के नाते दोनों में दोस्ती भी थी । 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद अंग्रेजों ने उनके पेनशन बहुत दिनों तक रोक के रखा था, क्यों कि उन्हे इस बात का संदेह था कि ग़ालिब सिपाईयों से मिले हुए थे । उन दिनों एकबार उन्हे दिल्ली के ऐंग्लो अरबिक कालेज (वर्तमान ज़ाकिर हुसेन कालेज ) में पड़ानें के लिये आमंत्रित किया गया था । ग़ालिब कलेज के द्वार तक पहुँच कर कालेज के प्रिनसिपल को संदेश भेजा ताकि वे उन्हे स्वयं आकर खातिरदारी के साथ ले जायें । अंग्रेज प्रिनसिपल को ये बात पसंद न आया और वह इनकार कर दिया । इसी बात पर ग़ालिब ने वहीं से अपना पालकी वापस ले आए । इस घटना का विवरण, एक फलक पर लिख कर दिल्ली के अजमेरी गेट के पास लगाया गया, जो आज भी है । उस पर लिखा है कि - ग़ालिब यहां तक आए थे ।
हमारा कोशिश यह है कि उनके कविताओं से कुछ, देवनागरी मे यहाँ उपस्थित कर सकें। अगर ग़लती हो तो हम क्षमा चाहते हैं और इस विषय पर आप का टिप्पणी, जो हमारे लिये बहुत ही मूल्यवान होगा, इस पते पर भेजिये -