मिर्ज़ा ग़ालिब का कविता
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मिर्ज़ा ग़ालिब  उर्दु के एक बहुत ही प्रसिद्घ कवि माने जाते थे ।
हमारा कोशिश यह है कि उनके कुछ कविता या ग़जल हम देवनागरी मे यहाँ
उपस्थित करें ।

1)      वो फ़िराक़ और वो विसाल कहाँ    
2)      
ज़ुल्मतकदे में मेरे शब-ए-ग़म का जोश है  
3)      
फिर कुछ इस दिल को बेक़रारी है  
4)      
आ कि मेरी जान को क़रार नहीं है  
5)      
आमों की तारीफ़ में            
6)      
मिलती है ख़ू-ए-यार से नार इल्तिहाब में        
7)      
दिल-ए-नादान तुझे हुआ क्या है              
8)      
आह को चाहिए ऐक उम्र असर हो नें तक     

मिर्ज़ा ग़ालिब के कुछ शेर और अबु सयीद आयुब द्वारा बंगला मे अनुवाद
9)      हम-नें वहशत्क़दह-ए बज़म्-ए जहां-में जूं शमा    
10)     
रौनक-ए हस्ती है इश्क़-ए ख़ानाह् ओ वीरानह् साज़ से    
11)     
यह फ़ित्नह् आदमी की ख़ानह्-वीरानी को क्या कम है ?  
12)     
ख़ुशी क्या ख़ेत पर मेरे अगर सौ बार अबर आए    
13)     
हम कहां के दाना थे, किस हुनर में यक्ता थे    
14)     
फ़लक को देख के करता हुं याद उसको, असद    
15)     
बेदद-ए इश्क से नहीं डरता मगर, असद    
16)     
वह फ़िराक़ और वह बिसाल कहां    
17)     
थी वोह एक शख़्स के तसबिबुर से    
18)     
बेनियाज़ी हदसे गुज़री, बंदापरवर, कब तलक     
19)     
इश्क़ पर ज़ोर नहीं ; है यह वो आतश, ग़ालिब    
20)     
या रब, वोह न समझें हैं न समझेंगे मेरी बात     
21)     
उर्ज़-ए न-उम्मीदी-ए चश्म-ए ज़ख़्म चर्ख़ क्या जाने     
22)     
हर क़दम् दूरी-ए मनज़िल है नुमायां मुझसे       
23)     
मुहब्बत में नहीं है फर्क़ जीने और मरने का    
24)     
ग़ालिब, तेरा अह्वाल सुना देंगे हम उनको      
25)     
हूँ मै भी तमाशइ-ए नैरंग-ए तमन्ना    
26)     
क़ता कीजीए न त’अल्लूक़ हम से   
27)     
आ ही जाता वह राह पर, ग़लिब   
28)     
हुई मुद्दत् के ग़ालिब मर गया, पर याद आता है     



मिलनसागर