गीतकार – साहिर लुधियानवी संगीतकार – एन. दत्ता गायक – महम्मद रफी फिल्म – धूल का फूल
तू हिन्दू बनेगा न मुसलमान बनेगा इंसान की औलाद है इंसान बनेगा अच्छा है अभी तक तेरा कुछ नाम नहीं है तुझको किसी मजहब से कोई काम नहीं है जिस इल्म ने इंसान को तकसीम किया है उस इल्म का तुम पर कोई इल्जाम नहीं है तू बदले हुए वक्त की पहचान बनेगा इंसान की औलाद है इंसान बनेगा
मालिक ने हर इंसान को इंसान बनाया हमने उसे हिन्दू या मुसलमान बनाया कुदरत ने तो बक्शी थी हमें एक ही धरती हमने कहीं भारत कहीं ईरान बनाया जो तोड़ दे हर बाँध वो तुफान बनेगा इंसान की औलाद है इंसान बनेगा
नफरत जो सिखाए वो धरम तेरा नहीं है इन्सां को जो रौंदे वो कदम तेरा नहीं है कुरआन न हो जिसमें वो मन्दिर नहीं तेरा गीतान हो जिसमें वो हरम तेरा नहीं है तू अमन का और सुलह का फरमान बनेगा इंसान की औलाद है इंसान बनेगा
ये दीन के ताजिर ये वतन बेचने वाले इन्सां की लाशों के कफन बेचने वाले ये महलों में बैठे हुए कातिल ये लुटेरे कांटो के एवज रूहे-चमन बेचने वाले तू इनके लिये मोत का ऐलान बनेगा इंसान की औलाद है इंसान बनेगा
गीतकार – साहिर लुधियानवी संगीतकार – ओ.पि. नैयर गायक – महम्मद रफी फिल्म – नया दौर
ये देश है वीर जवानों का अलबेलों का मस्तानों का इस देश का यारों इस देश का यारों क्या कहना ये देश है दुनिया का गहना यहां चौड़ी छाती वीरों की यहां भोली शक्लें हीरों की याहां गाते हैं रांझे मस्ती में मचती हैं धूमें बस्ती में पेरों पे बहारें झूलों की राहों में कतारें फूलों की यहां हँसता है सावन यहां हँसता है सावन बालों में खिलती हैं कलियाँ गालों में कहीं दंगल शोख जवानों के कहीं करतब तीर कमानों के यहां नित्त-नित्त मेले सजते हैं नित्त ढोल और तासे बजते हैं दिलबर के लिए दिलदार हैँ हम दुशमन के लिए तलवार है हम मैदां में अगर हम डट जाएँ मुशकिल है कि पीछे हट जाएं
गीतकार – साहिर लुधियानवी संगीतकार – जयदेव गायक – महम्मद रफी फिल्म – मुझे जीने दो
अब कोई गुलशन न उजड़े, अब वतन आज़ाद है रूह गंगा की, हिमालय का बदन आज़ाद है खेतियां सोना उगाएं वादियां मोती लुटाएं आज गौतम की जमीं तुलसी का वन आज़ाद है अब कोई गुलशन न उजड़े, अब वतन आज़ाद है
मन्दिरों में शंख बाजे, मस्जिदों में अजां शेख का धर्म और दीने बरहमन आज़ाद है अब कोई गुलशन न उजड़े, अब वतन आज़ाद है लूट कैसी भी हो अब, इस देश में रहने न पाए आज सबके वास्ते, धरती का धन आज़ाद है अब कोई गुलशन न उजड़े, अब वतन आज़ाद है
गीतकार – साहिर लुधियानवी संगीतकार – जयदेव गायिका – लता मंगेशकर फिल्म – हम दोनो
अल्ला तेरो नाम, ईश्वर तेरो नाम सबको सनमति दे भगवान अल्ला तेरो नाम . . . इस धरती का रूप ना उजड़े प्यार की ठण्डी धूप ना उजड़े सबको मिले सुख का वरदान अल्ला तेरो नाम . . . मांगों का सिन्दूर ना छूटे मां बहनों की आस न टूटे देह बिना भटके ना प्राण अल्ला तेरो नाम . . . ओ सारे जग के रखवाले निर्बल को बल देने वाले बलवानों के दे दे ज्ञान अल्ला तेरो नाम . . .
गीतकार – साहिर लुधियानवी संगीतकार – रोशन गायिका – सुधा मल्होत्रा फिल्म – दीदी
बच्चों तुम तकदीर हो, कल के हिन्दुस्तान की बापू के बरदान की, नेहरू के अरमान की आज के टूटे खंडहरों पर तुम कल का देश बसाओगे जो हम लोगों से न हुआ, वह तुम करके दिखलाओगे तुम नन्ही बुनियादें हो दुनिया के नए विघान की बच्चों तुम तकदीर हो, कल के हिन्दुस्तान की . . .
जो सदियों के बाद मिली है, वह आज़ादी खोए ना दीन-घर्म के नाम पे कोई बीज फूट का बोए ना हर मचहब से ऊंची है कीमत इंसानी जान की बच्चों तुम तकदीर हो, कल के हिन्दुस्तान की . . .
फिर कोई ‘जयचन्द’ न उभरे फिर कोई ‘झाफर’ ना उठे गैरों का दिल खुश करने को अपनों पे खंजर ना उठे धन-दौलत के लालच में तौहीन न हो ईमान की बच्चों तुम तकदीर हो, कल के हिन्दुस्तान की . . .
बहुत दिनों तक इस दुनिया में रीत रही है जंगों की लड़ी है घरवालों की खातिर फौजें भूखे-नंगों की कोइ लुटेरा ले न सके अब कुर्बानी इंसान की बच्चों तुम तकदीर हो, कल के हिन्दुस्तान की . . . बापू के बरदान की, नेहरू के अरमान की बच्चों तुम तकदीर हो . . .
गीतकार – साहिर लुधियानवी संगीतकार – सचिन देब बर्मन गायक – महम्मद रफी फिल्म – प्यासा
ये कूंचे ये नीलाम घर दिलकशी के ये लूटते हुए कारवाँ ज़िन्दगी के कहां है, कहां है, वो मुआफिज़ खुदी के जिन्हें नाज़ है हिंद पर वो कहां हैं कहां हैं, कहां हैं, कहां हैं . . .
ये पुरपेच गलियां, ये बदनाम बाजार ये गुमनाम राही, ये सिक्को की झंकार ये अस्मत के सौदे, ये सौदो पे तकरार जिन्हें नाज़ है हिंद पर वो कहां हैं कहां हैं, कहां हैं, कहां हैं . . .
ये सदीयों से बेख्वाब सहमी सी गलियां ये मसली हुई अधखिली जर्द कलियां ये बिकती हुई खोखली रंगरलियां जिन्हें नाज़ है हिंद पर वो कहां हैं कहां हैं, कहां हैं, कहां हैं . . .
ये उजले दरीचों में पायल की छम-छम थकी-हारी सांसों पे तबले की धन-धन ये बेरूह कमरों में खांसी की ठन-ठन जिन्हें नाज़ है हिंद पर वो कहां हैं कहां हैं, कहां हैं, कहां हैं . . .
ये फूलों के गजरे, यह पीकों के छींटे ये बेबाक नजरें, ये गुस्ताख़ फिकरे ये ढलके बदन और ये बीमार चेहरे जिन्हें नाज़ है हिंद पर वो कहां हैं कहां हैं, कहां हैं, कहां हैं . . .
यहां पीर भी आ चुके हैं जवां भी तनोमंद बेटे भी, ओब्बा मियां भी ये बीवी भी है और बहन भी है मां भी जिंन्हें नाज़ है हिंद पर वो कहां है कहां हैं, कहां हैं, कहां हैं . . .
मदद चाहती है वो हव्वा की बेटी यशोदा की हमजिंस राधा की बेटी पयंबर की उम्मत, जुलैख़ा की बेटी जिंन्हें नाज़ है हिंद पर वो कहां है कहां हैं, कहां हैं, कहां हैं . . .
ज़रा मुल्क के रहबरों को बुलाओ ये कूचे, ये गलियां, ये मंज़र दिखाओ जिन्हें नाज़ पर हिंद पर उन को लाओ जिंन्हें नाज़ है हिंद पर वो कहां है कहां हैं, कहां हैं, कहां हैं . . .
गीतकार – साहिर लुधियानवी संगीतकार – लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल गायक –महम्मद रफी फिल्म – इज्जत
क्या मिलिए ऐसे लोगों से जिनकी फितरत छुपी रहे नकली चेहरा सामने आए, असली सूरत छुपी रहे खुद से ही जो खुद को छुपाएं, क्या उनसे पहचान करें क्या उनके दामन से लिपटें, क्या उनका अरमान करें जिनकी आधी नियत उभरे, आधी नियत छुपी रहे नकली चेहरा सामने आए, असली सूरत छुपी रहे क्या मिलिए ऐसे लोगों से जिनकी फितरत छुपी रहे
दिलदारी का ढोंग रचाकर, जाल बिछाएं बातों का जीते जी का रिश्ता कहकर, सुख कुछ थोड़ी रातों का रूह की हसरत लब पर आए, जिस्म की हसरत छुपी रहें नकली चेहरा सामने आए, असली सूरत छुपी रहे क्या मिलिए ऐसे लोगों से जिनकी फितरत छुपी रहे