शकील बदायूंनी – हिंदी फिल्म जगत के सुनहरे युग के गीतकार थे।
उनका जन्म उत्तर प्रदेश के बदायूंन में हुआ था। पिता मोहम्मद जमाल अहमद सोख्ता क़ादिरी
उनके पड़ाई का सारा बंदोवस्त घर पर ही कर दिया था। अरबी, उर्दू, फारसी और हिंदी का
तालिम उन्हे घर पर ही दिया गया।
उनका दूर का रिश्तेदार ज़िया-उल-क़ादिरी बादायूंनी, मजहबी शायर थे। शकीलजी इनके द्वारा
प्रभावित हुवे थे। बचपन से ही उन्हे शेर और शायरी पसंद आने लगा था।
1936 में वे अलिगढ़ मुसलिम विश्वविद्यालय मे दाखिल हुए और कॉलेजों के बीच होती मुशायरों
मे भाग लेकर पुरस्कार जीतने लगे। पढ़ाई के साथ साथ वे शायरी में भी तालिम लिया, हकीम
अब्दूल वाहीद ‘अश्क’ बिजनोरी से।
1940 में वे सलमाजी से शादी की, जो उन्ही के दूर के रिश्तेदार भी थी। वे दोनो एक ही मकान
में रहते थे बचपन से, लेकिन परदानशीन होने के कारण शादी से पहले दोनों का मुलाकात नहीं
हुआ था।
बि.ए. पास करने के बाद शकीलजी दिल्ली में सप्लाई अफसर के नौकरी लेने के बाद भी मुशायरों
मे भाग लेते रहें, जो उन्हे सारे देश में मशहूर कर दिया। उन दिनों पीछड़े हुए या दबे हुए क़ौम के
लिए गीत लिखना स्वाभाविक था। लेकिन शकील ने लिख रहे थे प्यार-मोहब्बत-रोमांस के गाने।
1944 में वे बम्बई आकर फिल्म निर्माता ए.आर. कारदार और संगीतकार नौशाद से मुलाकात
की। जब नौशादजी ने उन्हे एक लाईन में अपने शायरी के बारे में कहने को कहा, तो
शकीलजी का जवाब था . . .
हर दर्द का अफ़साना दुनिया को सुना देंगे,
हर दिल में मोहब्बत की एक आग लगा देंगे।
उसि वक्त नौशादजी ने उन्हे करदारजी का फिल्म दर्द (1947) के लिए गीतकार चुन लिया।
फिल्म ‘दर्द’ के गाने बहुत लोकप्रिय हुआ। दर्द फिल्म के लिये लिखा गया शकीलजी का
पहला गीत था ‘अफसाना लिख रही हूँ’ और गायिका थी उमा देवी (टुनटुन)। नौशादजी के साथ
शकीलजीका जोड़ी अच्छी तरह जमा और वे एक से बड़कर एक गीत देशवासीओं को देते रहे।
नौशाद के अलावा संगीतकार रवि (रवि शर्मा), ग़ुलाम मोहम्मद, हेमन्त कुमार के साथ भी उनका
जोड़ी अच्छी चली। इनके ओलावा सचिन देव बर्मन, सि. रामचन्द्र, रोशन जैसे प्रसिद्ध
संगीतकारों ने भी उनके गीतों मे संगीत दिया।
उनाका लिखा हुआ गीतों से सजा है नौशाद के संगीत में, दीदार (1951), बैजू बावरा (1952), मदर
इन्डिया (1957), मुघल-ए-आज़म (1960), दुलारी (1949), शबाब (1954), गंगा यमुना (1961),
मेरे मेहबूब (1963) इत्यादि फिल्में। रवि के संगीत से सजा हे घराना, चौदहवीं का चांद (1960)
जैसे फिल्म, हेमन्त कुमार के संगीत से सजा है साहिब बिवि और ग़ुलाम (1962) जैसे फिल्म।
शकील ने कुल 89 फिल्मों के लिये गीत लिखा था। इसके अलावा बहुत सारे ग़ज़लें भी रचना की
जो पंकज उधास जैसे गायकों ने गाया है।
शकील नौशाद, दिलीप कुमार, मोहम्मद रफी, जॉनि वाकर जैसे करीबी दोस्तों के साथ बैटबिंटन
खेलना या शिकार पे चले जाना या पतंग उड़ाने के शौकीन भी थे।
सिर्फ 53 साल का उम्र में ही, डायाबेटिस (मधुमेह) के वजह से, शकीलजी का देहांत हुआ था
20 एप्रील 1970 को, बम्बे हसपिटल मे। छोड़ गये स्त्री, पुत्र, कन्या एवं लाखों कड़ोरों उनके गीत
के भक्त तथा चाहनेवाले भारतवासी। उनका देहांत के बाद, मित्र अहमद ज़कारिया तथा
रंगूनवाला, उनके परिवार के लिये, ‘याद-ए-शाकील’ नाम का एक ट्रस्ट बनाए थे।
भारत सरकार उन्हे गीतकार-ए-आज़म का उपाधी से नवाज़ा है। उन्हे तिन बार फिल्मफेयर पुरस्कार
से भूषित किया गया, श्रेष्ठ गीत रचना के लिये। वे थे . . .
1. 1961 में फिल्म ‘चौदहवीं का चांद’ का टाईटल संग ‘चौदहवीं का चांद हो’ गीत के लिये।
2. 1962 में फिल्म ‘घराना’ का ‘हुस्नवाले तेरा जवाब नहीं’ गीत के लिये।
3. 1963 में फिल्म ‘बीस साल बाद’ का ‘कहीं दीप जले कहीं दिल’ गीत के लिये।
उनके गीतों को हमें ज्यादा भरोसेमंद जगह से नहीं मिली है। इसलिये आपको ग़लतियां नज़र आ
सकता है। हम इसके लिये आप सबसे क्षमा प्रार्थना करते हैं।
यह पन्ना कवि शकील बदायूंनी के प्रति मिलनसागर का श्रद्धांजली है। उनके गीतों को आनेवाले
पीढ़ी तक पहुँचाने में सफल होने पर ही हामारा इस प्रयास को हम सफल मान पायेंगे।
मिलनसागर में शकील बदायूंनी का मूल पन्ना . . .
ऋण स्वीकार : विकिपीडिया
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इस पन्ना का पहला प्रकाशन - 13.03.2015
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