दुष्टकवि, 22.11.2016

दुष्टकवि
13.11.2016
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मिलनसागर
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हे मोदीजी
दुष्ट कवि
नरेन दामोदर मोदीजी आप जिस खेत से खाते हैं,
लैंड बिल को पारित करके उसे ही बेचना चाहते हैं!
चाय बेचनेवाले थे आप आज मंत्री बने प्रधान।
देश बेच के न डुबईओ चाय बेचनेवालो का नाम।   
सोचिए जी, ज़िंदगी में आप को तो सब मिला।
फिरभी आप क्यों चलाते ये देश-बेचो सिलसिला।
अमीरों ने आपके पीछे बहाया धन पानी जैसा।
समझ मे अब आता कुछ कुछ, उन से आपका दोस्ती कैसा!
देख देख कर टी.भी. पर ऐड
(Ad), दंग रहे हम साल भर,
इतना धन आप पर कोई क्यों करेगा न्योछावर?
स्कैम-बाहादुर कांग्रेसी से भारतवासी थे परेशान।
और कोई तो था नहीं उस लोकसभा वोट-ए-मैदान।
इसलिए भारतवासी, आप को दिया था चान्स।
आप उन्हींको, जमीन छीनके, फुटपाथ पे करवाएंगे डान्स!?
इतिहास में विदेशीयों ने युद्ध जीत कर किया राज।
आप तो अब बिना युद्ध ही सौंप रहे हैं अपना ताज!



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हे मोदीजी महामहीम, भारत माता के रहीम!
गद्दी पर बैठ कर आप दिखाने लगे अच्छे दिन!
चीन जैसे दुशमन को आप बुला करके अपने घर,
झिनपिंजी को प्यार जताया, झुलेलाल से भी बड़कर।
आपके अमीर दोस्तों के बीच बहुत सारे हैं भैया,
जो अधिक शुभलाभ के सुख में चीन मे निवेश किया!
उनके पूंजी रहे सलामत, उनके आये अच्छे दिन!
इसलिये आप मस्का लगाए, चाहे हो दुशमन झिनपिं।
बासठ साल को भूल गए क्या, “हिन्दी चीनी भाई भाई”!
उस नारे से शुरू हुई थी खून की नदीयां और लड़ाई।
जिस चीन ने अरुणाचल को भारत का अंग माना नहीं,
उसी चीन से दोस्ती पे क्यों? हमने आज भी जाना नहीँ।

स्वच्छ भारत अभियान चला के टी.भी. पर्दे गरम किया।
साफ सड़क पे झाड़ू मारी, जलाए बापू के दीया।
सवाल “दुष्ट” करता हूं मैं, मैं जो हूं दुष्ट कवि।
देश का शासन आपके हात जब, कड़क शासन क्यों नहीं?
जिनसे साफ रखवाना है देश, उनमे से कुछ कामचोर।
इसलिये ये हाल देश का, कूढ़ा-करकट अब घनघोर।


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उचित होगा हे मोदीजी, कठोर हात से राज करें।
सर्वकाम में भ्रष्टाचारी, तुरन्त आप सब साफ करें।
अपने अपने काम करे सब, यही आप को देखना है।  
और नहीं तो “स्वच्छ भारत” सिर्फ एक “मिडिया सपना” है।

अमरीका का धन से पलता पाकिस्तान में दहशदगर्द।
अब बच्चों के हत्या पर महसूस करे हैं इसका दर्द।
ओबामा के पैसे से वे ओसामा को पनाह दिया।
कशमीर नाम के जन्नत को वे जहन्नम में बदल दिया।
अमरीका का स्वार्थ मिटे तो तभी किसीका सोचेगा।
अव्वल दर्जे का बनिया है, मुफ्त में कुछ न बेचेगा।
मोदीजी, आप ऐसे देश के पीछे पीछे क्यों दौड़े?
देश का धन लूठनेवालो को पहनाईए हथकड़े।

सूईस बैंक के खाते में जो धनराशी है, उसका क्या?
कहां गया है आपका वादा, वोट के पहले किया हुआ?
वादा था जी आप करेंगे नेताजी पर पर्दा फांस।
कौन सी वह देश है जिसपे आप का इतना एहसास?
कि, अदालत को बता चुकें है - नेताजी पर धूंध ही भाय!
नेताजी से बड़ा हुआ आज वीदेशी संपर्क, हाय!
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किस देश को बचा रहें आप, किसका पूंजी वहां निवेश?
किसके अच्छे दिन पर बलि नेताजी का इस अवशेष?

सुना अमीर भक्त नें एक दसलाखी सूट भेंट दिया।
आप भी मेहेरबानी करके उस सूट को पहन लिया।
देखी हमने उस सूट को, मिडिया ने ज़ूम किया!
सोने की जरी से उस पर आप का नाम लिखा हुआ।
छोटी सी एक प्रश्न मन में इस वक्त पर आता है---
ऐसे भेंट कोई और स्वीकारे, उसको क्या कहा जाता है?
पद पे रहते स्वीकारें तो न्याय करे काररवाई अटूट!
लेकिन आप तो प्रधान मंत्री है, आप के लिये सब कुछ छूट!

वीदेशीयों से गिड़गिड़ाके लाभ से ज्यादा ही क्षति।
काश आपको होता श्रद्धा भारतवासी के प्रति।
वीदेशीयों के दया से श्रीमान देश को आगे बड़ाएंगे!
इतिहास गवाह है, जल्द फिर हमसब दास बन जाएंगे।
कभी आपको अमरीका ने, भीसा किया था इनकार।
सोचे, स्वाभिमानी है आप, कभी न जाएंगे उसपार।
पानी फेर दी व सोच पे आप, जाके ओबामा के द्वार।
हम गलत थे, हम गलत थे, बहुत गलत थे हे सरकार!
मैं दुष्ट कवि हूं, दूष्टों जैसा बातें किया करता हूं।
फिर भी मैं ने इस कविता में “गुजरात” नहीं उठाया हूं।
.     *********************  कलकत्ता, 16. 03. 2015
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गीतकार साहिर लुधियानवी से क्षमा मांगते हुए . . .
कहां हैं, कहां हैं, कहां हैं . . .
दुष्ट कवि

ये जवां हैं ये नाति है इंदिरा के
ये नसले-जवाहर, बेटा राजीव के
कहां है कहां है वो ताज कांग्रेस के
जिन्हें नाज़ है उन पर वो कहां हैं
कहां हैं, कहां हैं, कहां हैं . . .

किसानों की खूदकुशी, ये बेबस बाजार
ये गुमनाम राही और स्कैमों की झंकार
कौमनवेल्थ-खेल और थ्री-जी का हुंकार
जिन्हें नाज़ है उन पर वो कहां हैं
कहां हैं, कहां हैं, कहां हैं . . .

विरोधी दलों के चूभती चुटकलियां
मां को भी सुनाया बेवजह गालीयां
ये सब सुन कर भी चूप्पी बोलचलियां
इस वक्त भी गायब, ये साहब कहां है
कहां हैं, कहां हैं, कहां हैं . . .
भाजपा में चलता सिर्फ अमित का सन सन
चारों और देश में सिर्फ मोदी का धम धम
बीड़ीवालों का बोलबाला, घरवापसी का ठन ठन
दुष्ट कवि भी पूछे, ये साहब कहां है
कहां हैं, कहां हैं, कहां हैं . . .

गांधी सुभाष जैसे नेता के दल थे
अब तो रहा सिर्फ मनमोहन की बातें
उसको बचाने जब सड़कों पे उतरें
वहां भी वहां भी ये साहब गायब थे
कहां हैं, कहां हैं, कहां हैं . . .

.     ***************  कलकत्ता, 06. 04. 2015
श्री  राहुल गांधी के, ऐन मौके पर गायब हो
जाने पर लिखा गया!
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मोदीजी, हां मैं हिन्दु हूं
दुष्ट कवि
अगर मान भी ले हम कि गोधरा के बाद में,
जो कुछ हुआ था, आप बिलकुल न थे उसमें।

फिर भी, मैं दुष्ट कवि, करूंगा सवाल ऐसे।
दिल साफ अगर था, इतना फ़ना वहां कैसे?

भूल ही जाता शायद, लेकिन हम क्या करें।
आपके आने के बाद, गीर्जाघरों मे लूट बढ़े।

नेताओं कहे गर्व से बोलो मैं हिन्दु हूं।
सो तो हूं, पर आज ये गर्व से कैसे कहूं?

गर्व था कि हिन्दु कभी न कोई मसजिद तोड़ा।
गर्व था कि इस देश में सबने सबसे नाता जोड़ा।

इन दिनों घर-वापसी, उस नाता ही तोड़ रहे।
“हां मैं हिन्दु हूं”, पर अब ये गर्व से कैसे कहे?
.     **************  कलकत्ता, 16. 03. 2015
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कशमीर नाम के जन्नत में
जहन्नम को बोया।
जब से गया अंग्रेज देश से,
अमन चैन ही खोया।
बच्चे बड़ कर जवान बन गये,
जवां पहुंचे बुढ़ापा।
कितनें तो यह देख न पाया,
आतंकीयों ने हड़पा।
खबरों में भाई पता चला है
अन्दर का यह किस्सा !
आतंकीयों के पालपोशी में
सरकारी था हिस्सा !

सालों साल से चल रहा ये
बेईमानों का खेल।
शहीद जवानों कफनों में और
उनके सर पे तेल।
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भारत मां को देता गाली
कारण जो भी होता।
चुटकिओं में कहीं पर भी
तिरंगा जल जाता।
गद्दी पर अब जनाब मुफ्ती
भाजपा बैसाखी।
शपथ लेकर ही उन्होंने,
आवाम को मारी आंखी!

आवाम वहां के, दहशद्गर्दी
से न डर के भागे।
जानों की परवाह न करके
वोट दिया था जा के।
सरहदों को रक्षा करता
वीर जवान हमारे।
अपने जां की बाज़ी पर भी
एक इंच ना छोड़े।
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पाकिस्तानी दल्लाओं को टैक्स-पेयर क्यों पाले
दुष्ट कवि  ( कशमीर में भारत विरोधी अलगाववादीओं पर कड़ोरों खर्च करने का संवाद खुलासा होने पर लिखा गया! 09. 04. 2015 )
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वीर आवाम और वीर जवान
मुफ्ती को न दिखा।
शुकरिया अदा कीया उसने,
पाक और आतंकी का !

खूंखार खूनी, देशद्रोही,
कूचक्री जो ठहरे---
नागरिकों को उकसाने जो
चलते चाल गहरे।
ऐसे भेड़ियों को मुफ्ती
कारावास से छोड़ा।
जेल से बाहर आते ही वो
पहनी असली चेहरा।
“हिन्दोस्तानी हम नहीं है”---
ये है इनका नारा।
तालिबानी राज पसंद और
पाकिस्तान सहारा।
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मुफ्तीजी को याद दिला दूं---
जनता राज का गेम,
आप बने थें होम मिनिस्टर
विश्वनाथ पि.एम.
आपके शासन किस क़दर था
सुनिये उसका हाल---
उठा लिया आप ही के बेटी
उनका ये कमाल!
पांच आतंकी छोड़े थे तब
बेटी वापस लाने।
था क्या अंदर कुछ और बातें,
सिर्फ अल्लाह ही जानें!

दो बार ऐसा हुआ आपके
ताजपोशी के बाद।
खूंखार आतंकीयो को छोड़े,
बढ़ा आतंकवाद।
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अब तो खुले आम सड़क पे
पुलिस गोली खाते।
न जाने आज किसकी बारी...
सोच के लोग निकलते।
जान गवाके, देशद्रोही,
सिपाही पकड़के लाते।
आप जैसा नेता उनको
चुटकी में रिहा करते।

अब आते हैं उस ख़बर पे
जिसका हुआ खुलासा।
आतंकीयों के पालपोशी में
सरकारी था पैसा !
वाह जी! क्या ख़ूब है!
इस ग़रीब देश की बातें...
देशविरोधी रहे मजे में,
आवाम मरे तड़पाते।
.
प्रश्न करें ये दुष्ट कवि कि
कैसा डील ये काले ?
पाकिस्तानी दल्लाओं को
टैक्स-पेयर क्यों पाले ?

सौ सौ कड़ोर बहा पानी में,
हिसाब कोई न देता।
बाढ़ आए जब झेलम में तब
कहां थे ये सब नेता ?
पाकिस्तान से बातें करता
पाकी-गीत गाता।
मस्ती करने के समय पर
भारत का पैसा लेता।
बाढ़ हो या पाक-आतंकी
सर पे जब मंडराता।
बचानेवाला एक ही, जिसे
भारतीय सेना कहलाता।
.
पाकिस्तानी दल्ले को क्यों
मुफ्ती जैसा नेता,
जिगर के टुकरे के जैसा वो
गले से लगा लेता ?
ऐसे पाकी दल्लाओं को
सुरक्षा दिया जाता!
आतंकी के दोस्त जो ठहरे . . .
उसी से जोड़ा नाता।
सुरक्षा क्यों चाहते ये लोग ?
किसकी निशाना पर ये ?
मारनेवालों से दोस्ती पर भी
नहीं करें भरोसे!

पाकिस्तान के इशारों पर
वे करते सारे बातें।
फिर भी जरा से भूल हूई तो
गोली से भून जाते।
.
मीरवाईज़ के पिता को ये लोग,
ऐसे मारा, माना।
इनकी मनमानी का कीमत
हमें ही क्यों चुकाना ?
दुशमनों के दोस्तों को क्यों
आवाम पाले पोषे ?
देश तोड़नेवाले को क्यों
हम ना फरामोशे ?

.******** कलकत्ता, 09. 04. 2015
कशमीर में भारत विरोधी
अलगाववादीओं पर कड़ोरों खर्च
करने का संवाद खुलासा होने पर
लिखा गया!



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ये भूकंप तबाही और राजनीती
कवि-आलोक सिंह कुशवाहा
25.4.2015
जब-जब तबाही के  बादल आये
नेताओ ने अपने हमदर्दी दिखाये
धर्म की आङ मे,नफरत की झाङ लगाये
जो बटे उन्हे कट्टर वादी बतलाये।
मन्दिर गिरे, मस्जिद गिरे
मै पुँछू इसांन से गिरा कौन?
जब जान पे आयी चेहरे एक थे
बचे तो राम-रहीम हो गये।
मुवावजा भी पेश हुआ नीलामी का
मदद की नही उनकी गुलामी का
क्या कह और कर पाते हम??  
हमारी जमीर ही जरूरतो से बँधी रही।
हमारी सांसे टुट रही है
आप अपनी आंखे खोल के तो देखो
प्रकृति हमसे रुष्ट है
आपसी लङायी भुला के तो देखो।
हसीन होगें लम्हे सारे
एक दुसरे का हाथ थाम के तो देखो।
मत बाँटो राजनीती की चाह मे हमे
लहू एक, सासें एक, राहे एक
तुम भी इसांन बनो साथ दो
ना अधेंरा दो दिन का उजाला दो हमे।
**************
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हाय हाय केजरीवाल!
दुष्ट कवि
भारत के राजनीति में जितने भी थे दल ।
सब के सब चोर थे या कीचड़ के थे मल ।।
स्कैम की नदियां बह रहा था देश में ।
दिल्ली के मसनद पे मनमोहन बुत बनें ।।
संसद में लोकपाल को बनाया जोकपाल ।
जहन्नम में डूब रहा था, देश का वो हाल ।।
खुली हवा के जैसा आया अण्णा हजारे ।
कस के मूँह पर राजनेता के वे झाड़ू मारे ।।
इसके बाद में झाड़ु लेकर सामने आया ।
केजरीवाल और मित्रों मिल कर “आप” बनाया ।।
आम आदमी पार्टी जीत कर जश्न मनाया ।
मोदी-ओबामा-बेदी मिल कर भी हरा न पाया ।।
कहते थे वह गणतंत्री हैं, बाकी तानाशाही ।
सब कुछ उनके ही सही है, बाकी उलटा राही ।।
आम आदमी दंग रह गए, जब उनका पोल खुला ।
विरोधीओं को, कुछ कहने का, मौका नहीं मिला ।।
बकबक करता केजरीवालजी ठहरे गायब गुंगा ।
उनके विरोधीओं को पीटा किराया का गुंडा ।।
हाय हाय हाय हाय अरविंद केजरीवाल।
दुष्ट कवि कहे कि तेरा हो बुरा हाल।।  
.     *********************  कलकत्ता, 29. 03. 2015
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कवि प्रदीप से क्षमा मांगते हुए
आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं झांकी हिंदुस्तान की
दुष्टकवि,  23.6.2015, कलकत्ता

आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं झांकी हिंदुस्तान की
इस मिट्टी से तिलक करो ये धरती थी बलिदान की
वंदे मातरम ... वंदे मातरम ... वंदे मातरम ... वंदे मातरम ...

आए दिन कशमीर मे झंडा उड़ता पाकिस्तानी है  
दक्षिण में अम्माँ ने इनकम टैक्स न भरके, रानी है
जमुनाजी और गंगा अब सिर्फ गंदा-नाला पानी है
“हाट” “घाट” “निराला ठाठ” अब तो सिर्फ कहानी है
देखो ये तसवीर हमारे शरम की अपमान की
इस मिट्टी से तिलक करो ये धरती थी बलिदान की
वंदे मातरम ... वंदे मातरम ... वंदे मातरम ... वंदे मातरम ...

ये है राजपुताना जिसका नाज़ कभी था वीरों पे
अब तो इनका गर्व है केवल आइ.पी.एल. के हिरो पे
राजपूतों की शान को कुचला वनियों वाले डीलों पे   
नाचे अब के रानीसाहेबा सिक्कों की झंकारों पे  
भूल रहे सब तन मन से कुरबानी राजस्थान की  
इस मिट्टी से तिलक करो ये धरती थी बलिदान की
वंदे मातरम ... वंदे मातरम ... वंदे मातरम ... वंदे मातरम ...
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देखो मुल्क मराठों का शिवाजी धावा बोला था   
उनके राज में जनगण का तो सब का बोल बाला था
अब “सेना” के मुख से सुन ले एक ही नारा “मराठा”    
बाकी हिन्दोस्तानी जाए भाड़ में, इनका नारा था
अब शिवाजी घोड़े चढ़ सिर्फ शान है महाराष्ट्र की   
इस मिट्टी से तिलक करो ये धरती थी बलिदान की
वंदे मातरम ... वंदे मातरम ... वंदे मातरम ... वंदे मातरम ...

जलियां वाला बाग मे चली अंग्रेजोंकी गोलियां
आज़ादी के नारे देते खेली खून की होलियां    
क्यों उस आज़ादी को सोचे खालिस्तानी – छलियां ?  
कोइ न जाने क्यों चली फिर दे दनादन गोलियां    
अब धन लूठे मंत्रीयों और जान चले किसानों की  
इस मिट्टी से तिलक करो ये धरती थी बलिदान की
वंदे मातरम ... वंदे मातरम ... वंदे मातरम ... वंदे मातरम ...

ये देखो बंगाल का अब भी हर चप्पा हरियाला है   
नमो-लैंडबील अब उस भू-पर पंजा डालनेवाला है   
राज करे मा-माटी-मानुष, गुंडाराज बहाला है   
सुभाष-रवि के जन्मभूमि में पार्टी देश से आला है    
हर बच्चा अब पकड़े झंडा अपनी पार्टी-नाम की   
इस मिट्टी से तिलक करो ये धरती थी बलिदान की
वंदे मातरम ... वंदे मातरम ... वंदे मातरम ... वंदे मातरम ...
गुजरात सावरमती में बापू करते ध्यान वहां
लौहपुरुष पटेल का उंचा मूरत अभी बन रहा  
इसि जगह पे दंगों के दिन बेसुमार खुन बहा
दंगों-रंगे वह हाथों को लोकतंत्र शाबाश कहा !
अहिम्सा का स्वर्ग को दुनिया दंगा-नगरी नाम दी
इस मिट्टी से तिलक करो ये धरती थी बलिदान की
वंदे मातरम ... वंदे मातरम ... वंदे मातरम ... वंदे मातरम ...   

सारा हिन्दोस्तान के कोने कोने में बदहाल है
राजनीतिज्ञ भ्रष्टाचारी भारत में सुखहाल है
जात धर्म प्रादेशीक दंगा यही हमारा ताल है
दुनिया भर में इंडियन चरित्र पे सवाल है
बलिदान देने के सिवा अब ठहरे प्यासे जांन की  
इस मिट्टी से तिलक करो ये धरती थी बलिदान की
वंदे मातरम ... वंदे मातरम ... वंदे मातरम ... वंदे मातरम ...

कवि प्रदीप के सौभाग्य था “अच्छे दिन” वो देखे थे
दुष्टकवि का भाग्य विधाता “अच्छे दिन” भी लिखे थे
देखने के लिये नहीं थे वह तो सिर्फ सुनने के थे
सुबह से लेके नींद आने तक “अच्छे दिन” ही सुनते थे   
निरन्तर, मोदी-मिडिया-ढोल “अच्छे दिन” बयान की
इस मिट्टी से तिलक करो ये धरती थी बलिदान की
वंदे मातरम ... वंदे मातरम ... वंदे मातरम ... वंदे मातरम ...
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कर्नल कृत्यानन्द दास का कविता और कार्टुन
मिला सीट चालिस,
पाठ कर नीत चालिसा ||
Future दिखता हाय,
तेरा बिलकुल खालीसा ||
.              ****  23. 09. 2015

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कवि कृत्यानन्द दास का दनादन दोहा

२७ रूपया हाथ रख हुआ ग़रीबी दूर ||
अमिया तो तक देखा नहीं ढ़ुढ़ रहे अमचूर ||
.               कृत्यानन्द दास/26/09/2015/ सिकन्दराबाद

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कवि कृत्यानन्द दास का दनादन दोहा

FDI के नाम पर, मोदी फिरे विदेश ।।
Dollar का तो क्या पता, change किए बहु dress।।
.                             कृत्यानन्द दास/०२/१०/१५/ सिकन्दराबाद

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कवि कृत्यानन्द दास का दनादन दोहा

काले धन की वापसी, हो गई बिसरी बात ।।
१५ लाख की आबती, करती हमें निराश ।।

राम देव बाबा धरो, ऐसा आसन एक ।।
एक shot में pass हो, लगे ना दूजा take ।।

बाबा आश न तोड़िए, आश टुटे मन रोए ।।
चार साल के बाद फिर नया election होए ।।

जनता मुरख है नहीं, बात समझ सब जाए ।।
ऐसे बटन दबाएगी, कुर्सी हो bye bye ।।
.                      कृत्यानन्द दास/03/10/2015/ सिकन्दराबाद

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मोदीजी, हमें जीने दो
दुष्टकवि, कलकत्ता, 09.10.2015

दादरी में फैला अफवाह गया जान सो देशी।
घर में भी अब चैन कहां ? सिर्फ बचा क्या “घर वापसी” ?
“अच्छे दिन” के सौदागर जी नरेन दामोदर मोदी !
ऐसे काले दिन दिखलाकर कहते हो राष्ट्रवादी ?

दादरी के बाद में पीटा कशमीरी विधायक !
विधायक भी बच न पाए, आप जो ठहरे नायक !
हिन्दु का क्या परिभाषा है ? कह न सकेगा कोई।
कोई चिता पर अनन्तयात्रा, कोई गोरे चल जाई !

कोई हिन्दु शाकाहारी, कभी न छूँए मांस।
दुष्टकवि को गोश्त न दे तो, रुक जाए उनका साँस !
तैतीस कड़ोड़ देव-देवीयाँ जो चाहे सो पूज।
एक और देव अल्लाहजी पे क्यों झगड़े की गूँज ?

सैतालिस का बटवारा था, इन्डिया पाकिस्तान।
जो रह गए इस देश में उनका ही हिन्दोस्तान।
हिन्दोस्तान का शर्त नहीं था धर्म-खाना-पीना।
इतने साल बाद में ये क्या "हिन्दुत्व" का बहाना ?

स्क्याम बहादूरों के बाद मोदी को दिया चान्स।
काम करें सिर्फ, न देखो जी कौन क्या खाए मांस।
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पहले ख़ाकी पैंट उतारो, पहनो धोती-चद्दर
दुष्टकवि, कलकत्ता, 24.10.2015

अच्छा होगा “स्वयं” को ही “सेवा” करें आर.एस.एस.।
हिन्दोस्तानी को ना सिखाएं संस्कृति-भोजन-वेश।
अपने को गर सोचते हो - हिन्दुत्व के ध्वज-धर !
पहले ख़ाकी पैंट उतारो, पहनो धोती-चद्दर।
दुश्टकवि कहे वेश-भोजन से ऊंचा है हिन्दु धर्म।
कृत्यानंद के कार्टूनों से थोड़ा तो करो शर्म!

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ओआरओपी ऐलान किए !
दुष्टकवि, कलकत्ता, 17.9.2015

जो बच्चे नहीं रोते---
माँ भी दुध नहीं देते।
तो, भला मोदीजा का क्या?
नहीं है रत्ति भर दया---
नहीं कोई जानों की परवाह,---
फैलाकर मज़हब की अफवाह,
चड़ते आएं सिड़िया।
तो भला मोदीजी का क्या?
वो तो बिहार का था वोट,
जो जा रहा था छूट।
सिर्फ उसि के लिए,
ओआरओपी ऐलान किए!
दुष्टकवि कहता है भाई---
सियासती कर रहे सब घाई
तुम ने किया जान कुरबान,
बेझिझक् दिया बलिदान।
.
जवानों रहे अनुशासित्,
लेकिन, देश का बदल गया है रीत!
अब तो सिर्फ . . .
सच्चे का मुँह ही होता काला
और झूठे का ही होता है बोलबाला।
दुष्टकवि और कहे ऐ सुन्---
तेरे सरकार लगाए धुन---
कि “लूठे मारे हम,
बाकी देख भी लेंगे हम”।
इस घोर कलि युग में
इतना अच्छा भी ना बन
कि राजा लुठता जाए धन
और तू लूठ जाए दनादन।
श्रीमान अनुपम खेर
दुष्टकवि, कोलकाता, 24.11.2015
अमीर खान के खुलके बोलने पर अनुपमजी का टुईट पर . . .

श्रीमान अनुपम खेर,                       हो सकते थे वे शेर।
लेकिन हो गया अब देर!
छूँ कर नमो जी के पैर,                   करके भाजपा के सैर,
अपने को बेच खाए श्री खेर।

अमीर खान का प्रतिवाद---           देश में असहिष्णुता का बात,
बढ़े हैं नमो जी के साथ !
दिल खोल कर जब बोला,               तब जला दिल में शोला।
चालू टुईटर पे मुक्का-लाथ !

करके गुजरात बरबाद,                   अब भारत में साँठगाँट,
करें सिर्फ हिन्दूत्व की बात।
दादरी में हुआ खून---                  दिल्ली में बजाया धुन---
गोश्त खाने का संवाद।

इन सब पे अनुपम चुप।                 “घर वापसी” में गुपचुप।
शायद भूले हैं संविधान।
दुष्टकवि कहे --- खतरा !                   देश तोड़ने पर उतरा
और, कोई बोले तो “बदनाम” !?
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बेटी बचाओ, साथ में पुत्रजीवक चारा खाओ
दुष्टकवि

कश्मीर से कन्याकुमारी, गुजरात से मणिपुरा
बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, मोदीजी का नारा।
समझ न पाए दुष्टकवि कि माजरा क्या है सारा!
इधर बचाए बेटी, और बेचे “पुत्रजीवक चारा”।
फ्लाईट-मोड का प्रधानमंत्री, विज्ञापन का मारा,
पैसा पाकर मिडिया नाचे - जय तारा, माँ तारा।
दुष्टकवि को दिखता देखो - हिन्दु नाम पे धब्बा।
इतना बस है, न तो खुलेगा पैंडोरा का डब्बा---

.  कलकत्ता, 7.6.2016
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ये उसकी बेखुदी हो गयी
सचिन राजपूत, 10.7.2016
sachinrajput9953@gmail.com

ये उसकी बेखुदी हो गयी
रात से दोस्ती हो गयी
जब वो आया छत पे नज़र
फीकी फीकी चांदनी हो गयी ।

फूल कैसे ये दिल में खिले
मिले भी तो भीड़ में हम मिले
हाथ तेरा जो छूटा ज़रा
मैं कहीं तू कहीं हो गयी।

खुद से खुद को ही खोता रहा
तेरी यादों में रोता रहा
मेरा सब कुछ लूटा है यहां
हाय! कैसी दिल्लगी हो गयी।

दिल का मुकदमा था उसपे चला
कैद खाने में मैं था डला
अदालत थी उसकी 'सचिन'
वो बाइज़्ज़त बरी हो गयी।
.
काले धन की वापसी - कृत्यानन्द दास
FDI के नाम पर - कृत्यानन्द दास
२७ रूपया हाथ रख - कृत्यानन्द दास
मिला सीट चालिस - कृत्यानन्द दास
पाकिस्तानी दल्लाओं को - दुष्टकवि
आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं झांकी - दुष्टकवि
ये उसकी बेखुदी हो गयी - सचिन राजपूत
बेटी बचाओ, साथ में - दुष्टकवि
ये भूकंप तबाही और - आलोक सिंह कुशवाहा
श्रीमान अनुपम खेर - दुष्टकवि
मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो - दुष्टकवि
पहले ख़ाकी पैंट उतारो - दुष्टकवि
मोदीजी, हमें जीने दो - दुष्टकवि
ओआरओपी ऐलान किए - दुष्टकवि
हे मोदीजी - दुष्टकवि
कहां हैं, कहां हैं, कहां हैं - दुष्टकवि
मोदीजी, हां मैं हिन्दु हूं - दुष्टकवि
हाय हाय केजरीवाल - दुष्टकवि
चुप्पी से बैंक में रखा - दुष्टकवि
काला धन से “लड़ता” (?!) मोदी - दुष्टकवि
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दुष्टकवि
13.11.2016
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नरेन मोदी का छाती छप्पन - दुष्टकवि
शिवजी के संग नाचे - दुष्टकवि
नोटबन्दी में बन्द पड़ा है - दुष्टकवि
छप्पन इंच का मोदी बोला - दुष्टकवि
मन-की-बातूनी मोदी, चले - दुष्टकवि
कालाधन मिटाने चले थे - दुष्टकवि
न मिला वह काला धन - दुष्टकवि
कागज का शेर - सुनीति कुमार माइति
दुष्टकवि
21.11.2016
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कागज का शेर  कवि सुनीति कुमार माइति, सैनिक स्कूल पुरुलिया,
रचना
27.08.1980, यहां पर प्रकाश - 19.07.2020.
    
जीने की तमन्ना से
जीवन क्या जाननेसे
पहलेही
मरचुका हूँ मैं।

जीतकी अनुचित चाहसे
हर खेलमें
हार गया हूँ मैं ,
जीतका स्बाद
कैसा होता है
जाननेसे पहले ।

स्वाभिमान को
बहुत दिन पहलेही
बेच डाला हूँ मैने
सामाजिक सम्मान की
अभिलाषा से ।

हसरत तूफान उड़ाने का
पर खुद की ही
साँस फूल रही है।
बाठ़के बादलों को
तितरबितर करने की
विध्वंसी इच्छा
मेरे खून को
उफना देती है
पर -- अपनी ही
ठुड्डीका नीचेका अंधेरा
हटाने का जोश
मुझमे आता नहीं ।

पथभ्रष्ट न्यायमूर्तियों को
और -- सारे अशूभ , असुन्दर,
अनुचित को
गोलिसे उड़ा दूंगा ------
सोचते सोचते
सोचते ---- सोचते ----
मै ---
कागजका शेर बन गया हूँ